अलख तेरा सितारों में,
प्रणय की बंदिनी हो तुम
मेरी हर मुस्कुराहट हो,
समग्र सब जिंदगी हो तुम,
तुम्हें ही सोचता हूं मैं,
तुम्हें ही जीवता हूं मैं,
मेरी हर प्यास को आस,
मेरी तिश्नगी हो तुम
तुम्हारे हाथ का मेरे हाथों से स्पर्श
स्पन्दन करेगा कायनात को
तब विखंडित होकर
उष्मा हमारे प्यार की
दूर आकाश में
विचरते बादलों में जमीं
ओस की बूंदों को बर्षा देगी इस धरा पर
और जी उठेंगी
हमारी मुरझाई आकांक्षाऐं
उठाएंगी हाथ
और पकड़ लेंगी
बादलों की ओट से झांकती रश्मियों को
बनाएंगी सतरंगी इन्द्रधनुष
राजेश कुमार
जम्मू ( जम्मू कश्मीर ) भारत