बढ़ रही है गर्मी, द्वार खड़ी है मौत।
न जागे गर नींद से, मनाओगे रोज शोक।।१।।
काट जंगल वनों को, बन गए खुद यमराज।
फँसोगे अपने जाल में, वरना आ जाओ बाज।।२।।
नौतपा में दिखी गर्मी, याद आ गयी नानी।
पता चला इस दौर में, कितना उपयोगी पानी।।३।।
जीव जन्तु भी मर रहे, खुद सराबोर इन्सान।
छेड़ो न तुम धरा को, मान जाओ हैवान।।४।।
वृक्ष लगाओ धरा पर, मिलेगा तुम्हें सुकून।
नहीं तो बढ़ता ताप ये, कर देगा एक दिन खून।।५।।
अभी तो यह झलक है, आगे देखना सीन।
जागो अभी समय है, न बजवाओ बीन।।६।।
लगातार न काम आएं, पंखा कूलर एसी।
काटो नहीं वृक्ष लगाओ, उपाय अडिग है देशी।।७।।
पानी पियो रेज का, सत्तू शिकंजी रस।
सूती कपड़ा साथ रखो, बाइक हो चाहें बस।।८।।
हमारी तुम्हारी आपकी, हम सबकी जिम्मेदारी।
शिक्षित जैसा करो कार्य, वृक्ष लगाओ भारी।।९।।
दुष्यन्त कुमार भी जगायेगा, सो रहे जो लोग।
अपना कर्तव्य भूलकर, भोग रहे हैं भोग।।१०।।