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खुदगर्जी

रोशनी एम.बी.ए की पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉब कर रही थी। परिवार वाले उससे शादी के लिए कहते हैं तो वह मना कर देती। रोशनी कई साल से एक लड़के के संपर्क में थी। जो उसके परिवार की हैसियत से बहुत कम था। वह दूसरे धर्म संप्रदाय से भी था। रोशनी अच्छी तरह से जानती थी कि उसका परिवार उसकी पसंद के लड़के को कभी नहीं अपनायेगा।

परिवार की इकलौती लाडली बेटी रोशनी इतनी खुदगर्ज हो गई कि उसने अपने परिवार को छोड़, उस लड़के के साथ रहने का मन बना लिया।

एक दिन रोशनी ने भागने की पूरी तैयारी करके, अपनी मम्मी को व्हाट्सएप मैसेज किया। रोशनी लिखती है,”मम्मी आपने मुझे पढ़ाया लिखाया। उसके लिए आपका धन्यवाद। आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूँ। मैं अब अपनी पसंद के लड़के के साथ रहने जा रही हूँ। आप लोग उसे जानते तो हैं लेकिन आप उसे कभी अपनाएंगे नहीं। मैंने आपका कोई भी सामान नहीं लिया है और मैं खाली हाथ जा रही हूँ।”

उसकी मम्मी ने जैसे ही उसका व्हाट्सएप मैसेज पढ़ा, उनके तो पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। बड़ी हिम्मत कर उन्होंने फोन हाथ में लिया। उन्होंने तुरंत रोशनी को मैसेज किया, ” प्यारी बेटी रोशनी तुम खाली हाथ नहीं जा रही हो। तुम ले जा रही हो इस घर की इज्जत अपने साथ। तुम्हारे साथ जा रहा है तुम्हारे पिता की पगड़ी का मान। तुम्हारे साथ जा रही हैं इस घर की सारी खुशियाँ। तुम्हारे साथ जा रहा है परिवार में बच्चों पर किया जाने वाला विश्वास। तुम ले जा रही हो लड़कियों की शिक्षा का अधिकार।”

रोशनी ने जैसे ही अपनी माँ का मैसेज पढ़ा, उसकी आँख एकदम खुल गई। अश्रु जल नैनों में उतर आया। उसने तुरंत फैसला किया घर लौटने का।

क्या दैहिक संबंधों का प्रेम, परिवार के प्रेम से ऊपर होता है? फिर वासना और खुदगर्जी के चलते परिवार की इज्जत को क्यों तार-तार कर दिया जाता है?

प्राची अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

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