Latest Updates

नया सवेरा

         स्टेशन से निकल कर जैसे ही रामू थोड़ा आगे बढ़ा की तेज बारिश चालू हो गयी । पीछे से आ रहे जुगनू ने बिना सोचे समझे अपनी छतरी उसके सिर पर भी कर दी।रामू ने चौंककर उसकी ओर देखा और जुगनू की आँखों में पता नही क्या नजर आया दोनों ही हँसकर साथ साथ चलने लगे ।दोनों में दोस्ती की शुरुआत हो गयी ।

             जीवन भी तरह तरह के खेल दिखाता है ,कभी हँसाता है तो कभी रुलाता है । जुगनू कभी एक छोटे से शहर में रहता था ।वहाँ छोटे में ही उसका विवाह भी हो गया और विवाह हो गया तो जल्दी ही चार बच्चों का पिता भी बन गया । पढ़ने की उम्र में ही जिम्मेदारियों का भारी बोझ उसके कंधे पर आ गया । पढ़ाई तो कर नहीं सका क्योंकि उसका मन पढ़ने में कभी लगा ही नहीं ।

  “अरे जुगनू कहाँ तक पढ़ाई किये हो ?” रामू ने पूछा । रामू भी उसी की तरह छोटे शहर से निकलकर नौकरी की तलाश में आया था ।

 “आठवीं तक भाई फिर नवीं में फेल हो गया तो आगे की पढ़ाई छोड़ दी । “जुगनू ने बताया।

“कोई बात नहीं मैं भी दसवीं फेल ही हूँ ।”रामू नेहँसते हुए बताया मानों अपने गमों,अपने दुखों का ही माखौल उड़ा रहा हो ।

                 रामू एक मध्मयवर्गीय परिवार का लड़का था ।पिता की भी अच्छी ही तनख्वाह थी ।वे एक विद्यालय में अध्यापक थे ।सब कुछ तो हंसी खुशी गुजर रहा था की अचानक उसके पिता  की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गयी ।उस समय वह पाँचवी में पढ़ता था और पढ़ने में भी वह अच्छा था । माँ एक अनपढ़ और घरेलू महिला थी । पिता के पैसों से किसीतरह गुजारा हो रहा था ।धीरेधीरे सारे रिश्तेदारों ने भी कन्नी काटनी शुरू कर दी। उनके पास अपना एकमात्र सहारा उनका एक छोटा सा घर था जहाँ वे भूखे भी सो जाते तो कोई देखने वाला नहीं था । आठवीं कक्षा तक उसने खूब मेहनत की परन्तुं नवी कक्षा से घर की स्थिति और भी डावांडोल होने लगी । किसी तरह नवीं किया फिर जब दसवीं कर रहा था माँ की भी तबियत खराब रहने लगी ।एक नन्हीं सी जान और इतनी सारी परेशानियां । माँ तो बीमारी हालत में भी एक कम्पनी में काम करती थी और रामू विद्यालय से घर आने के बाद घर के सारे काम संभाल लेता था ।वह ट्यूशन भी पढ़ाना चाहता था पर लोग नवीं दसवीं के बच्चे को ट्यूशन देने को तैयार नहीं होते थे ।माँ की तबियत खराब होने से वह पढ़ाई में भी ठीक से ध्यान नहीं दे पा रहा था ।दसवीं में फेल होना वह मानसिक रूप से स्वीकार नहीं कर पा रहा था । माँ ने तो उसे दुबारा पढ़ने के लिए भी कहा पर वह बहुत निराश हो चुका था । माँ की परेशानी कम करने के बजाय वह बढ़ा ही रहा था ।आखिर माँ को किसी तरह समझाकर वह नौकरी की खोज में निकल पड़ा ।

        रामू की आँखों से आॅसू  बहने के लिए आतुर हो रहे थे पर उसने उनको दृढता से रोक रखा था ।

      जुगनू ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,”भाई आज से मैं तेरा भाई हूँ । हम हर एक परेशानी मिलकर सहेंगे । तुम अपनी पढ़ाई भी

पूरी करोगे और अच्छी नौकरी भी करोगे ।आज से मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ ।

       दोनों एक दूसरे का हाथ थामे नयी मंजिल की तलाश में चल पड़े ।सबसे बड़ी बात यह थी की दोनो को एक दूसरे की जाति व प्रांत का अभी तक कुछ भी पता नहीं था ।

डॉ. सरला सिंह “स्निग्धा”

दिल्ली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *