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बेलगाम आतंकवाद एक वैश्विक समस्या बन जाएगी

पाकिस्तान के घरेलू आतंकवाद के बारे में सबूतों की कोई कमी नहीं है। इसने IC-814 का अपहरण करने वालों का साथ दिया, 26/11 मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों को पनाह दी, दुनिया के सबसे वांछित आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को अपनी सैन्य अकादमी से एक मील से भी कम दूरी पर एक सुरक्षित पनाहगाह प्रदान की और डैनियल पर्ल के हत्यारों को पनाह दी। पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ने हाल ही में आतंकवादी संगठनों को प्रशिक्षण और वित्त पोषण के देश के इतिहास को स्वीकार किया।  इसके साथ एक एयर वाइस मार्शल ने कथित तौर पर 2019 के पुलवामा हमलों की साजिश रचने की बात स्वीकार की, और यह दावा किया कि यह पाकिस्तान की “रणनीतिक प्रतिभा” का प्रदर्शन था।

इसमें कोई दो राय नहीं कि “ऑपरेशन सिंदूर” पाकिस्तान के आतंकवाद

के इतिहास और विशेष रूप से पहलगाम में पर्यटकों की क्रूर हत्याओं के लिए एक सटीक, जवाबी और आनुपातिक प्रतिक्रिया थी। भारतीय सशस्त्र बलों ने न केवल आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया, बल्कि पाकिस्तान के बढ़ते हमलों के बाद, सैन्य ठिकानों पर हमला किया और सफलतापूर्वक उसके वायु रक्षा और रडार स्टेशनों को नष्ट कर दिया। हालांकि, युद्ध विराम का निर्णय एक आश्चर्यजनक तरीके से हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति ने सबसे पहले अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल एक्स के माध्यम से इसकी घोषणा की, उसके बाद विदेश मंत्री द्वारा भी इसी तरह के खुलासे किए गए। बाद में, उन्होंने कश्मीर का अनावश्यक और अनुचित संदर्भ दिया, एक तटस्थ स्थान पर मध्यस्थता की पेशकश की आदि-आदि। इसके अलावा, उन्होंने पाकिस्तान को उसके राज्य प्रायोजित आतंकवाद के लिए दोषी ठहराने से परहेज भी किया। कई मौकों पर, अमेरिकी राष्ट्रपति ने रिकॉर्ड स्वरूप कहा कि उन्होंने युद्ध विराम पर बातचीत करने के लिए व्यापार का लाभ आदि का उल्लेख किया। ये ऐसा दावा था जिसे हमारे सर्वोच्च राजनीतिक और राजनयिक कार्यालयों द्वारा तुरंत और स्पष्ट रूप से अस्वीकार नहीं किया गया। यह भारत की लंबे समय से चली आ रही विदेश नीति की समझ के विपरीत था जिसमें तीन आवश्यक बातें शामिल थीं। पहला, कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा था और रहेगा, और इस मुद्दे का कोई भी अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत को बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। दूसरा, पाकिस्तान के आतंकवाद और कश्मीर के मुद्दे को आपस में नहीं मिलाना चाहिए;  ये दो बिल्कुल भिन्न मुद्दे हैं और वैश्विक समुदाय नैतिक रूप से पाकिस्तान की आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों को उजागर करने के लिए स्वतंत्र है और इसे मुखरता के साथ उजागर भी करना चाहिए। तीसरा, जब तक सीमा पार से आतंकवाद बंद नहीं हो जाता और पाकिस्तान अपने अवैध कब्जे वाले कश्मीर को खाली नहीं कर देता, तब तक अन्य मुद्दों पर कोई बातचीत नहीं होगी। तटस्थ आधार पर मध्यस्थता या व्यापार को प्रलोभन के रूप में पेश करना पूरी तरह से अस्वीकार्य होना चाहिए।

इस बीच एक और आश्चर्यजनक घटना यह भी दिखाई दी कि वैश्विक समुदाय ने आतंकवाद को पोषित करने, वित्तपोषित करने और समर्थन देने में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने और उसकी निंदा करने का एक अच्छा अवसर खो दिया है। हाल ही तक, पाकिस्तान फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे सूची में था: और यह सघन निगरानी के अंतर्गत आने वाले क्षेत्राधिकार में आता था।

हालांकि, इस चल रहे संघर्ष के दौरान ही,  आईएमएफ (IMF) ने पाकिस्तान को एक और $1 बिलियन का बेलआउट प्रदान किया। उसके तुरंत बाद, पाकिस्तान ने मृत आतंकवादियों के कानूनी उत्तराधिकारियों को व्यापक समर्थन और मुआवजा देने की पेशकश की, जिससे आतंकवादी ढांचे को और मजबूती मिली। यह अकेले ही पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने में “महत्वपूर्ण रणनीतिक कमियों” वाले देश के रूप में एफएटीएफ (FATF) की ग्रे या ब्लैक सूची में फिर से शामिल करने का पर्याप्त  कारण हो सकता है।  वैश्विक समुदाय पाकिस्तान द्वारा आतंकी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिए धन का उपयोग करने की प्रवृत्ति के प्रति उदासीन नहीं रह सकता। उसे पाकिस्तान को दिए जाने वाले संसाधनों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

दोनों देशों को शांति, संवाद और तनाव कम करने के लिए बार-बार आह्वान करना उनके बीच गलत समानता का संकेत देता है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है (इसकी जीडीपी पाकिस्तान से 10 गुना है) और जल्द ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। पाकिस्तान की चरमराती अर्थव्यवस्था और धर्मार्थ दान पर निर्भरता किसी भी तुलना को निरर्थक बना देती है। भारत एक परिपक्व गणराज्य है जिसकी गहरी लोकतांत्रिक जड़ें हैं। यह जगजाहिर है कि पाकिस्तान को उसके सैन्य और खुफिया प्रतिष्ठान द्वारा चलाया जाता है। यह बात हाल ही में हुए संघर्ष के दौरान और भी पुख्ता हो गई जब अमेरिकी विदेश मंत्री ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को फोन किया, यह अच्छी तरह जानते हुए कि पाकिस्तान की सरकार के साथ बातचीत से कोई खास फायदा नहीं होगा। भारत अपने विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय शांति चाहता है। पाकिस्तान क्षेत्रीय अशांति चाहता है क्योंकि वह भारत के प्रति देश की खतरे की धारणा को गलत तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर बताकर अपने सैन्य-खुफिया तंत्र को सत्ता में बने रहने में मदद करता है। भारत शांति और समृद्धि के मार्ग पर चलना चाहेगा। भारत सरकार का लक्ष्य अपने सभी 1.4 बिलियन नागरिकों के लिए तेज़ और समान विकास करना है। इसलिए, वैश्विक समुदाय को संघर्ष के लिए “भारत-पाक” लेंस को लेकर झिझक और दोहराव तुरंत बंद कर देना चाहिए। वैश्विक समुदाय का पूरा ध्यान पाकिस्तान के आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को रोकने के वास्तविक और सात्विक प्रयासों पर होना चाहिए।

पाकिस्तान-चीन गठजोड़ एक ऐसी समस्या है जो दो मोर्चों पर भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को जटिल बनाती है। बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में हाल ही में हुए घटनाक्रमों से यह और भी खराब और विचारणीय हो गया है। बांग्लादेश ने कथित तौर पर चीन को एक एयरबेस को पुनर्जीवित करने की अनुमति दी है जो चिकन नेक कॉरिडोर के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत की सुरक्षा को खतरे में डालता है। भारत की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के निर्णयकर्ताओं को इन घटनाक्रमों की सावधानीपूर्वक निगरानी करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने चाहिए कि इन दबावों को नियंत्रित रखा जा सके। हमें भारत के कई मोर्चों पर विकसित होने वाले जोखिमों को कम करने के लिए अपने वैश्विक भागीदारों और सहयोगियों के साथ जुड़ने के अपने प्रयासों को दोगुना करना चाहिए। आज तक, ऑपरेशन सिंदूर सैन्य हस्तक्षेप और गैर-गतिज प्रयासों के माध्यम से आतंकवादी बुनियादी ढांचे को नष्ट करने के अपने घोषित उद्देश्य के साथ जारी है। भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि प्रमुख हितधारक बहुपक्षीय निकाय जैसे कि संयुक्त राष्ट्र और आईएमएफ और महत्वपूर्ण आर्थिक और सैन्य शक्तियाँ, विशेष रूप से पी5 – भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए आतंकवादियों की साजिश रचने, योजना बनाने, वित्त पोषण करने और उन्हें शरण देने में पाकिस्तान की भूमिका के प्रति पर्याप्त रूप से संवेदनशील हों।  यदि आज इस समस्या पर नियंत्रण नहीं किया गया तो नि:स्संदेह यह बेलगाम आतंकवाद एक वैश्विक समस्या बन जाएगी, जिसके परिणाम अत्यंत भयावह होंगे।

– डॉ. मनोज कुमार

लेखक – जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी हैं।

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