हेमंत जी अपना घर बड़े मन से बनवा रहे हैं। कोई कसर न छोड़ी मकान बनवाने में। पूरी जिंदगी का ख्वाब जो पूरा हो रहा था उनका। बचपन से ही पुराने मकान में रहते हुए जिंदगी गुजर गई। अब अपने मकान का घर का सपना पूरा हो रहा था। सारा दिन मकान बनवाने की भागा दौड़ी में ही लगे रहते। पैसा भी अपने बजट से ज्यादा ही लगाया। जैसे-जैसे मकान पूरा होता जा रहा था उनके मन में और परिवार में खुशियां भी फैल रही थी। अपने घर का सपना किसको अच्छा नहीं लगता भला?
एक दिन जयपुर से उनके पिताजी के मित्र आये। उनके मकान पर निर्माण कार्य चल रहा था। जयपुर वाले सुभाष चाचा जी बनता हुआ मकान देखने के लिए आ गए।
मकान को देखते ही सबसे पहले तो अरे इतना छोटा सा बनाया है बस। एरिया भी पाश नहीं लग रहा। फिर अंदर छत को घूरते हुए कहते हैं,”अब यह पी.ओ.पी नहीं चल रही।”फाल सीलिंग का जमाना है अब। मेरी कोठी का इंटीरियर देखना। पूरा एक करोड़ लगवा कर बनवाया है। 4 करोड़ में तैयार हुई है पूरी बिल्डिंग और अपनी बढ़ाई मारते रहे।
हेमंत सुनते रहे उनकी बेतुकी बातों को। जब उनकी बातें खत्म हो गई। तब हेमंत सुभाष चाचा से बोले,”चाचा जी आप 50-40 लाख रुपया मेरे खाते में डलवा देना। उसके बाद आप जैसा बताएंगे मैं वैसा ही इंटीरियर करा लूंगा। क्योंकि मेरी तो जितनी चादर थी मैं उतना काम करा दिया। अब आपकी सलाह के हिसाब से काम करने के लिए पैसे भी तो चाहिए ना। अभी आप ही दे देना। आखिर भतीजे के लिए इतना तो कर ही सकते हैं ना।
हेमंत की बात सुनकर चाचा सकपका गए।
अरे कैसी बात कर रहे हो तुम? चाचा बोले
इसमें गलत क्या है? बिना मांगे सलाह देना तो बहुत आसान है। सहायता करना कठिन। आप जब इतनी कानून पढ़ ही रहे हो तो थोड़ी सी सहायता भी कर दो। मेरा मकान आपकी पसंद का ही बन जाएगा। और जब आपका मन करे रहने भी आ जाना।
अरे मुझे कुछ जरूरी काम है। ऐसा कहकर जयपुर वाले चाचा जल्दी-जल्दी रफा दफा हो गए।
सच की कहा गया है कि किसी की बेटी का विवाह हो या मकान बन रहा हो तो फ्री की सलाह देने वाले बहुत आते हैं। हाथ पकड़ कर काम निपटाना वाला कोई मुश्किल से ही मिलता है।
हिंदुस्तान में तो वैसे भी फ्री की सलाह का बहुत ही रिवाज है।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश