Latest Updates

बातों से बात नहीं बनने वाली

सम्पादकीय (मनमोहन शर्मा ‘शरण’) सुर्खियां थीं कि अब शिवसेना– एनसीपी–कांग्रेस के तिपहिया रथ पर सरकार बनने जा रही है । और रातों रात समीकरण बदले और अगले दिन भाजपा की सरकार बन चुकी थी, देवेन्द्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे । ऐसी क्या जल्दी थी कुर्सी/सत्ता की । यहां तक शिव सेना…

Read More

हम सब तुम्हारे अपराधी हैं प्रियंका!

ख़ूब तड़पती रही गिलहरी गर्म तवे के भभके से सबने इसे तमाशा समझा, ताली पीटी, चले गए हम सब तुम्हारे अपराधी हैं प्रियंका! जाओ, अपने फफोलों के लिए मत तलाशो यहाँ कोई आँसू। परलोक में जाकर निर्भया को ख़बर कर देना, कि उसकी मौत पर जली मोमबत्तियों की रौशनी अब काली पड़ गई है। उसे…

Read More

नारी (कविता-9)

नारी  नारी कुल की मर्यादा है।  नारी उपहास की चीज नहीं।  जो मान घटाए नारी का, तो उसको कोई तमीज नहीं।।  सम्मान आबरू है नारी।  सब कुछ समाज पर है वारी।  आगे बढ़ने दो नारी को,  उसकी सीमा दहलीज नहीं,,,,,,, प्रसव की पीड़ा कौन कहे।  हर गम को नारी मौन सहे।  सब्र का दूजा नाम…

Read More

अलौकिक नारी (कविता-8)

नारी की एक अलौकिक कहानी है, उसकी जन्म से मृत्यु तक रवानी हैं। जब वो जन्मती हैं किसी आँगन में, तब वह सभी की प्यारी बन जाती हैं । जब वो छमाछम आँगन में खेलती हैं, तब वो सभी की हँसी बन जाती हैं। जब वो बड़ी होकर  शिक्षा लेती हैं, घर में सभी की…

Read More

नारी (कविता-7)

हम नारी आज की हो या कल की सब को साथ लेकर चलती हैं   अपने सच्चे मन से बड़े जतन से  खेल गुडिया का हो या  हो प्रसाद की पुडिया  मायेका हो या ससुराल  सब कुछ साँझा करती हैं प्यार , दुलार या हो उपहार  खुद अपने लिए छाटती नहीं  काट  -छाट से बचा  रख लेती…

Read More

नारी (कविता-5)

प्रणाम तुझे ए नारी शक्ति, तू अपने में उत्कर्ष है। पार करे सारी विपदाएं, तू अपने में संघर्ष है। साहस और बलिदान की देती नई मिसाल है। तू मानव जननी,तू पालनकर्ता,तू ही तो ढाल है। आदरणीय है,सम्मानित है तू सेवा की मूरत है। मां रूप में देखो तो,तू ईश्वर की ही सूरत है। प्यार भरे…

Read More

अनारी नारी (कविता-4)

अनारी नारी अशिक्षा की पिटारी बड़ी बीमारी।। शिक्षित नारी परिवारी जेवर फूलों की क्यारी।। नारी महान देती जीवन दान करो सम्मान।। नारी जनक पीढ़ियों की पोषक छुये फ़लक।। नारी दिवस लड़े अधिकार को मारे गर्भ को।। सशक्त नारी हर क्षेत्र पे कब्जा तोड़ती भ्रम।। क्रांति जगाती भ्रांतियां झुठलाती दिये की बाती।। केवल बेटा दकियानूसी सोच…

Read More

नारी है इस जग की मूल… (कविता-3)

नारी है इस जग की मूल रे नर! दे न इनको शूल…..      त्याग, समर्पण, सेवा धर्म      करती यह तन्मय हो कर्म      रखती हरदम सबका मान      घर, आंगन की इनसे शान      झोंक न खुद आँखो में धूल      रे नर! दे न इनको शूल…. दिव्य गुणों से यह परिपूर्ण करती विपदाओं…

Read More

नारी (कविता-2)

माना एक नारी की जिंदगी उसकी कब होती है पर उसे भी अधिकार है अपने मन से जिंदगी जीने का खिलखिलाने का गुनगुनाने का, पर ये अधिकार उसे स्वयं लेना होगा देना सीखा है लेना भी सीखना होगा कर्तव्य के साथ सचेत होकर आगे बढ़ कर अपना अधिकार लेना होगा, इससे नहीं बदलेगा उसका बेटी/…

Read More

” नारी ” (कविता-1)

कोंख बसर में रख तूं पाला राम कृष्ण महावीर बुद्ध ; नानक ईशा कलाम विवेकानन्द मनीषी प्रबुद्ध! 🌹 पतिव्रत धर्म निभाने को पाहन रूप धरी अहिल्या ; सतीत्व को सत्यापित करने अग्नि परीक्षा से गुजरी सीता! 🌹 पति के स्वाभिमान की रक्षा में सती हो गयी हिमालय नन्दनी ; सबरी धीरज की सुकुमार हृदया नारी…

Read More