खेल रहे सब गली गली में
साथ अबीर की झोली है।
गाते और झूमते सब जन
साथी आज तो होली है।
हाथ लिए पिचकारी डोले
तरह तरह के रंग साथ में।
भाग रहा कोई आगे आगे
पीछे रंग ले कोई हाथ में।
बहुत दिनों के बाद सजी
सबके ही द्वार रंगोली है।
कान्हा औ गोपाल साथ में
लगें देख बालक हैं सारे।
रंगों में देखो डूबे सब ऐसे
कोई नीले पीले औ कारे।
छुपकर देखें राधा प्यारी
मन की वो तो भोली है।
बच्चों के मन है जो भाये
हुड़दंगी होली यह आयी ।
गुझिया पापड़ संग संग में
ठंडई सभी के मन भायी।
बूढे बच्चों और युवा जन
घूमें लेके अपनी टोली है।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली