बड़ी मालकिन घर के नौकर चाकरों से बड़ा कठोर व्यवहार करती। उनको तुच्छ और हीन समझती। उनकी नजर में पैसा होना ही सबसे ज्यादा जरूरी था।
पूजा पाठ के नाम पर दिखावा भी बहुत करती अम्मा।
घर के नौकर बुरा नहीं मानते थे उनकी बातों का। कभी-कभी तो छूत-अछूत भी कर दिया करती थी।
बरसात का मौसम चल रहा था। अम्मा का पैर स्लिप हो गया। जिससे उनकी कूल्हे की हड्डी टूट गई। अम्मा लाचार, बिस्तर पर आ गई।
अब अम्मा की कौन सेवा करें। उनके बच्चे तो उनकी गंदगी देखकर मुंह फेरते। बहुएं बुरा सा मुंह बनाती। पोते पोतियों ने तो उनके कमरे में झांकना भी बंद कर दिया। घर के सदस्य आपस में और उलझने लगे। अम्मा ने खाना पीना भी छोड़ दिया क्योंकि अब उन्हें खाने से ही डर लगने लगा था।
कामवाली दयावती को अम्मा कर दया आ गई। वह अम्मा सेवा करने के लिए आगे आईं। उसने तन मन से अम्मा की सेवा की।
अब अम्मा को फर्क समझ में आ चुका था इंसानी रिश्ते और बनावटी रिश्ते में। अम्मा की आंखों से बहता पानी, उनकी शर्मिंदगी को व्यक्त करता।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर