दैर-ओ-हरम में रहने वाले तू जाने क्या पीर मेरी
जरा निकल तो दिखलाऊंगा कैसी है तदबीर मेरी
दैर-ओ-हरम में……….
तुझको ढूंढा सहरा-सहरा, तुझको खोजा गली-गली
कहीं मिला ना तू ऐ मालिक पत्थर की सी बूत ही मिली
कैसे हाल सुनाता तुझको ऐ पत्थर दिल ओ रे पीर
तुझसे तो अच्छा है बालक सुनता है तहरीर मेरी
दैर-ओ-हरम में रहने वाले……
तुझसे तो सब माँगा करते देता नही कोई भी नीर
आंखों में सब भरकर आँसू बैठे लगते जैसे फकीर
दैर-ओ-हरम में………….
मैंनें भी तेरी चौखट पे कितने ही सजदे हैं किये
लेकिन माँग नही रक्खी है तू दे दे तो बैर नहीं
दैर-ओ-हरम में रहने वाले………..
कन्हैया सिंह “कान्हा”
नवादा, छपरा, बिहार