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बदलाव

सुभाष जी अपनी पत्नी को जैसे ही समझाने का प्रयास करते, उनकी पत्नी मीनू एकदम बिखर जाती। बहु-बहु होती हैं, बेटी-बेटी। बहुत फर्क है दोनों में। बहू कभी बेटी नहीं बन सकती और सास कभी माँ। घर का माहौल भी प्रभावित होता उनकी भेद भरी बातों से।

 मीनू जी ज्यादा ही पुराने ख्यालातों की थी। कार्तिक नहा रही थी। सुबह 3:00 बजे से ही दिनचर्या शुरू कर देती। एक दिन लाइट नहीं आ रही थी। सुबह अंधेरे में ऐसी ठौर लगी कि कुल्हा ही टूट गया। बिस्तर पर लाचार पड़ गई। बेटी को बुलाने के लिए कॉल मिलाया तो उसने बच्चों की पढ़ाई की व्यस्तता बताकर अपना पल्ला झाड़ लिया।

पति और बेटे को व्यापार और ऑफिस भी देखना होता। ऐसे में उनकी बहू निशा ही उनकी दिन रात सेवा करती। उनकी आंखों में बहते पश्चाताप के आंसू उनकी बदली हुई मन स्थिति को दर्शा रहे हैं। बदलते समय के साथ रिश्तो में भी बदलाव जरूरी है।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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