।।माँ की महिमा कौन बखाने ।।
गंगा जल सम पावन ममता
प्रेमसुधा रस साने ।
सुखद तृप्ति अनवरत प्रदात्री
माँ को कहते साधु सयाने।।
माँ की महि,,,,,,,।।
जगकल्याणी सृजन है जग की
सृष्टा ईश्वर की माता ।
सब रस में पावनता भरती
सहती कष्ट न मन उकताता।।
सुत के हित मे सब दुख झेली,
फिर भी अधर रहे मुस्काता।
क्या क्या सहकर संतति पाले
कोई नहीं पता यह पाता।।
नेति नेति कहि माँ की महिमा
कवि कोविद जन गाते गाने।
माँ की महिमा,,,,,, ,, ।।
कवि प्रचण्ड जननी की आँचल
में सब सुख पा जाता है।
मनोभूमि के पुण्य धरा पर
प्रतिमा प्रतिफल दर्शाता है।।
माता वत्सलता की मूरति
उमाकान्त गाते हैं गाने ।
माँ की महिमा ,,,, ।।
रचनाकार -उमाकान्त तिवारी “प्रचण्ड