(सुनीता जायसवाल फैजाबाद उत्तर प्रदेश)
अबला समझने की भूल ना करना
आऊंगी कलाई में “हथकड़ी” बनकर
जेवर समझने की भूल ना करना!
झुक गई हूं मैं जरा सा क्योंकि,
मैं अदब की परवरिश हूँ
मेरी झुकी पीठ को तुम ,
पायदान समझने की भूल ना करना!
गिरेबान खाली नहीं तुम्हारा ,
दुनिया भर की करतूतों से ,
मेरे पाक दामन पर तुम,
उंगली उठाने की भूल ना करना!
झूठ के तख्त पर बैठकर ,
तुम इंसाफ क्या करोगे ,
मैं सच का मुंसिफ हूं ,
मुझ से टकराने की भूल ना करना!
मैं “कंगना” हूं सुन लो लोगों
अबला समझने की भूल ना करना !