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विवाह

विधा:-कविता

युगल बिताने अपना जीवन, बंधन में बॅंध जाते हैं।

हर विवाह की रीति यही है, पति-पत्नी कहलाते हैं॥

धर्म विधान मान्यता पालन, निज समाज का संग रहे।

हक सह दायित्वों का संगम, पत्नी का पति अंग रहे॥

नहीं अनैतिकता का पोषक, सुखी शांति उद्देश्य रहे।

अत्याचार कमी हो जीवन, मेल-जोल का भाव रहे॥

निर्वाहन जीवन का होता, सामाजिक सहयोग मिले।

पूरा “लक्ष्य”मूल हो जाता, बगिया में जब फूल खिले॥

मौलिक रचनाकार:- उमाकांत भरद्वाज (सविता) “लक्ष्य” भिण्ड (म.प्र.)

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