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परवरिश : डॉक्टर अरुणा पाठक

हर किसी को आते जाते…….. वह घर अपनी और आकर्षित करता था। करें क्यों ना आसपास के पूरे क्षेत्र में इतना सुंदर इतना महंगा इतना आलीशान घर, दूसरा नहीं था। वहां से गुजरने वाले उस घर को जरूर देखते बाहर एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी रहती. और उसमें टोपी पहना हुआ ड्राइवर बैठा रहता।

अक्सर इमली जोकि वहां से गुजरती रहती थी, कभी पैदल कभी अपनी स्कूटी से उस घर को दूर से लेकर जब तक दिखाई देता, देखती रहती।

हमेशा सेउसे लगता है। इस घर के अंदर कितनी खुशियां होंगी इस घर के लोग कितने प्रसन्न होंगे। कुछ दिनों बाद घर सजा धजा दिखाई दिया। मानो वहां पर कोई शादी होने वाली है।

मन ही मन उसे लगा ऐसे घर की कल्पना तो वह कभी कर तक नहीं सकती।

पिताजी के पास देने के लिए इतना  दहेज जो नहीं है।

फिर भी उस घर के अंदर लोगों से मिलने की हो उत्सुकता  उसकी हमेशा बनी रही।

कभी भी उस घर में उसे कभी बच्चों की हलचल दिखाई नहीं दी।

धीरे-धीरे घर के रंग रोगन कमजोर हो गए। और वह घर की रौनकता धीरे-धीरे घटती जा रही थी।

एक दिन संयोग से इमली को वहीं पास की दुकान से कुछ सामान लेना था।

सामान लेते लेते उसने दुकान वाले से पूछा यह घर किसका है।

उसने बताया किसी बड़े डॉक्टर का घर है।

कोई दिखाई नहीं देता इस घर में कभी भी।

उसने बताया कि जितना बड़ा यह घर है।

उस घर में रहने वाले लोग उतने ही अकेले हैं।

जाने पता नहीं इमली को क्या सूझी

गाड़ी को किनारे लगा कर । धीरे से गेट खोल कर अंदर गई।

 अंदर सारी चीजें आलीशान थी।

महंगे से महंगे चीजों का अंबार लगा था।

पर कहीं भी रौनक नजर नहीं आ रही थी।

एक बूढ़ी औरत अपना पैर खोल कर तेल लगा रही थी।

मां जी मैं अंदर आ सकती हूं।

कौन हो बेटा किससे मिलना है।

अब यहां कोई नहीं।

मैं तो आपके ही पास आई थी।

कैसी हैं आप।

यह सुनते ही उसकी आंखों सेझर -झर आंसू गिरने लगे।

क्या हुआ मां जी।

अरे बेटा जब यह घर बना था तो हमारा भी भरा पूरा परिवार था बहुत सारी जमीन को बेचकर गांव छोड़कर शहर आ गए।

आलीशान घर बनवाया।

बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया

आज सब बाहर विदेश में है।

अभी कुछ दिन पहले एक्सीडेंट हुआ था। जिसमें हमारे पति के साथ ड्राइवर भी खत्म हो गए।

कोरोना के कारण बच्चे भी वापस नहीं आ पाए।

और अब नौकर चाकर लगे हुए हैं मेरे लिए और मेरा अपना कोई नहीं।

पर आज हम उन बच्चों को दोष नहीं देते।

 परवरिश ही हमने ऐसी की जब हमारे साथ ससुर को हमारी जरूरत थी ,तब हम गांव से इसी तरह शहर चले आए थे।

आज हमें हमारे बच्चे छोड़कर विदेश चले गए हैं। अब हमारी राह देख रहे हैं कि कब हम जाएं और वह इस घर को बेचने आए।

अब इस घर के अंदर हम उन संस्कारों को ढूंढते हैं जो हम खो चुके हैं।

इमली को आज एहसास हुआ हर बड़े घर के अंदर सुख और शांति नहीं होती………

आभा

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