-अनीता गौतम
(प्रवक्ता एवं साहित्यकार)
कैसा लोकतंत्र है यह कैसा प्रजातंत्र है,??
मेरी बात मानो यारों यह तो भीड तंत्र है।
कि अधरों पे सिर्फ जहां जाति -धर्म का मंत्र है ,
खतरे में देखिए आज प्रजातंत्र है। कि तानाशाही ने दबोच रखी गर्दन संविधान की,
हम सब तमाशबीन हैं ,माफिया स्वतंत्र है।,,,,,,,,
,,,,,,जी हां हम बात करते हैं आज के राजनीतिक स्वरूप की तो 70 से 75 वर्ष का समय वह दौर रहा है जहां राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप अति परिवर्तनशील रहा है जिसमें नवीन योजनाओं का लोकार्पण है, विकसित अर्थव्यवस्था है,विकाशील कार्य प्रणाली है, व्यवस्थित न्याय व्यवस्था है, आधुनिकीकरण व नवीनीकरण है , पर भिर भी वही आज के परिवेश में अपराध की दुनियाँ में अपराधी सरेआम अपराध कर रहे हैं, सरे आम लोगों की चलती सड़कों पर हत्याएं हो रही हैं ,40 वर्षों तक इतनी लंबी अवधि तक अपराधों के जो बादशाह हैं वह पनपते रहते हैं ।इन सभी को कहीं ना कहीं तो संरक्षण मिलता ही है सबसे पहले दोषी वह असामाजिक तत्व व सरकार की आड़ में व सरकारी व गैर सरकारी महकमे हैं जो इन सभी अपराधियों को संरक्षण देते हैं कहने का आशय यह है कि, कोई भी जन्म से अपराधी नहीं होता उन्हें यह संरक्षण ही अपराधों की दुनिया को हरा भरा रखता है,और तो और उन्हें उच्च पदों पर आसीन करता है। ऐसी अराजकता पूर्ण व्यवस्था को हम कौन सी राजनीति की संज्ञा देंगे?? बड़ी निंदनीय है ऐसी कार्यप्रणाली जिसने व्यक्ति विशेष के गुणों और उसके व्यक्तित्व का आकलन ना कर सके,कल की न्याय व्यवस्था और कार्यप्रणाली में जमीन आसमान का अंतर और बदलाव है कल भी राजनीतिक पार्टियां थी,और कल भी सुचारू रूप से न्याय व्यवस्था थीं,पर आज का राजनीति का जो बदला स्वरूप है उसमेंअराजकता है, खंडन है,निरंकुशता है और तो और पक्ष विपक्ष के कटाक्ष ,और एक दूसरे के प्रति दोषारोपण हैं, अनगिनत पार्टियों में विभक्त कार्यप्रणाली है ,सबके अपने अपने मतभेद हैं ,अनगिनत समस्या हैं कहनेकहने का तात्पर्य यह है कि आज राजनीति कहां है, जहाँ देखो वहाँ रणनीतियाँ हैं धर्म के स्थान पर अधर्म है इन सब का दोषी कौन है जनता या जनार्दन कहना कठिन है और जिन के संरक्षण में वर्षों तक माफिया कारगर रहते हैं, फलते -फूलते हैं उन सभी दोषियों को सबसे पहले हिरासत में लिया जाना चाहिए ।जिससे निरंकुशता पर अंकुश लगाया जा सके ।पर वहां तक किसी सरकार के हाथ क्यों नहीं पहुंच पाते ?क्यों सभी अपनी कुर्सियों को बचाने में लगे रहते हैं,सभी को अपने पद छिन जाने का डर रहता है। पर ऐसी अव्यवस्थित कार्यप्रणाली को बदलना ही चाहिए क्योंकि राजनीति कभी बुरी नहीं होती बुरे होते हैं, राजनीतिज्ञ और रणनीति में खेलने वाले राजनीति और जहां रणनीतियां है वहां युद्ध है संग्राम है चाहे वह रामायण और महाभारत का काल हो या आज का परिवेश उत्तरदाई वही है जो अपराधी और तानाशाही को संरक्षण देते हैं ।
-अनिता गौतम
उत्तर प्रदेश आगरा
लेखिका एवं साहित्यकार
(जिला प्रमुख नीति एवं शोध विभाग महिला मोर्चा भाजपा जनपद आगरा)
