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सभ्य असभ्य इसी धरती पर।

डॉक्टर चंद्रसेन भारती

सभ्य असभ्य इसी धरती पर।

देव धनुज रहते आऐ।

रावण से सब घृना करते 

राम नाम सुन हर्साऐ।

धरती से ही सोना उपजे,

कोयला खान नजर आए।

मंथन से कोलाहल निकला,

अमृत वही नजर आए।

संस्कार मिलते हे घर से,

गली गलियारे मिलें नहीं।

कागा धन ना हरे किसी का,

कोयल किसको देत नहीं।

जिसने कड़वा खट्टा बोला,

मिलता उनको प्यार नहीं।

जलन ईर्ष्या स्वार्थ से,

मिलते सच्चे यार नहीं।

ऐसी बाणी बोलिए,

सुनकर मन हर्षाए।

औरों को शीतल करे,

आप सीत हो जाए।

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