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रिश्तो में सामंजस्य

निहारिका की शादी खूब धूमधाम से हुई। वह बहुत खुश है। ससुराल में उसे खूब अच्छा लाड प्यार मिल रहा है। पग फेरे (गौने) की रस्म के लिए आज वह मायके आई हुई है। सुबह से ही चहक रही है। सभी को अपने ससुराल के किस्से बताने में लगी हुई है। शाम को उसके ससुराल से लेने वाले आएंगे इसलिए तैयारियाँ हो रही है।

उसके कुछ रिश्तेदार और अड़ोस-पड़ोस के लोग घर पर आए हुए हैं। वह खूब सज धज कर तैयार होकर मटक रही है।

उसके पड़ोस वाली करुणा आंटी जो उसे पर कुछ ज्यादा ही निगाहें रख रही थी कहती हैं, अरे निहारिका शादी में तो बहुत ज़ेवर चढ़ा था तुझे। अब इतना कम कैसे पहन के आई है। अभी से जेवर उतार लिया तेरे ससुराल वालों ने। तू कुछ ज्यादा ही सीधी है। ऐसे सीधेपन से काम नहीं चलता।”

निहारिका उनकी बात सुनकर एकदम चुप हो जाती है। उसका मुँह फक्क पड़ जाता है।

निहारिका की दादी देख रही थी यह सब। वह बड़ी समझदारी से करुणा आंटी को कहती हैं,” नव विवाह हुआ है बच्ची का। इस तरह की बात नहीं करते। चीज जेवर सब उनका ही चढ़ाया हुआ है। कम पहनाये या अधिक। क्या फर्क पड़ता है? सबसे अमूल्य तो रिश्ते नाते होते हैं। जिनको बड़ा सहेज कर रखना पड़ता है। यह छोटी-छोटी बातें रिश्तो में खटास पैदा करती है। रिश्तो की बगिया को बहुत सींचना पड़ता है।”

दादी की बात सुनकर निहारिका दादी के एकदम गले लग जाती हैं। करुणा आंटी काम की व्यस्तता का बहाना बनाकर एकदम रपट लेती हैं।

लड़की को मायके से कभी भी गलत सलाह नहीं देनी चाहिए। नव रिश्ते पल्लवित होने में समय लगता है। सभी के सहयोग से रिश्ते नातों में मिठास बनी रहती है। छोटी सी भी गलत सलाह या गलत बात रिश्तो में दरार ला सकती है।

प्राचीअग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

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