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एरोप्लेन और मैं

एरोप्लेन उड़ा

मैं बैठी

विंडो सीट

बाहर देखा

सागर चला मेरे साथ

चलता गया साथ साथ

फिर

रुकने लगा

थकने लगा

चला  गया कहीं  पीछे।

बस मेरा एरोप्लेन

ही चलता गया।

एरोप्लेन और मैं

आज एरोप्लेन उड़ा

मैं विंडो सीट बैठी।

बाहर देखा

मेरे साथ मेरा शहर चला।

कुछ दूर चला ।

फिर

रुकने लगा।

 मुझे टाटा ,बाय  बाय

कहने लगा।

चला गया।

शहर की जगमगाहट बंद हो गई।

गुम हो गया

पीछे चला गया।

बस एरोप्लेन ही आगे बड़ा।

आज एरोप्लेन उड़ा

मैं बैठी विंडो सीट।

बाहर देखा

चला पूर्णिमा का चांद साथ साथ।

बहुत दूर तक

चला साथ

उसके पीछे

तारे बने पूछ।

लेकिन

चांद थमने लगा

रूकने लगा

पीछे चला गया।

तारों की पूछ भी गई पीछे।

बस एरोप्लेन ही आगे बड़ा।

आज एरोप्लेन उड़ा

मैं बैठी विंडो सीट।

बारिश बरसी

मूसलाधार।

फिर रुकी

फिर बरसी

फिर थम गई

चली गई पीछे।

बस एरोप्लेन ही आगे बड़ा।

आज एरोप्लेन उड़ा।

मैं बैठी विंडो सीट।

बाहर देखा

चले बादल

मेरे साथ साथ

उड़े बादल साथ बहुत दूर तक।

फिर

थमने लगे

रूकने लगे

चले गए पीछे।

बस एरोप्लेन ही आगे बड़ा।

अब एरोप्लेन हुआ धीमा

आया नीचे

रुका।

बाहर देखा

मेरा होम टाऊन

दिल्ली शहर

मेरा स्वागत करता

असंख्य

तारों से

जमगाता गगन जैसे

उल्टा जमीन पर बिछ गया ।

अब एरोप्लेन रुका

उसने बाय कहा।

मैं बाहर आई

टैक्सी ली

टैक्सी चली

चलती गई

दूर तक चली

फिर

धीमी हुई

थमने लगी

रुक गई।

मैं चली

लिफ्ट में घुसी

घर पहुंची।

अब

मैं थमी।

रुकी

लेटी

सबको

गुड नाईट की

सो गई।

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