Latest Updates

बिहार चुनाव : कब मिलेगी बिहार को अराजकता से आजादी…

पंकज सीबी मिश्रा / राजनीतिक विश्लेषण एवं पत्रकार जौनपुर यूपी

बिहार को अराजकता से आज़ादी कब ! यह प्रश्न हर उस व्यक्ति के जहन में है जो लालूराज का बिहार देखा है। आज यह आजादी जैसा महत्वपूर्ण स्लोगन किस बुनियाद पर बना है और कहां, जो आज लगभग बहुत से जगह पर इस्तेमाल होता है। इसकी बुनियाद पाकिस्तान के लाहौर में पड़ी। दरअसल 1980 के दशक में वहां जिया उल हक का शासन था और वहां महिलाओं को फेमिनिस्ट इवेंट और बातचीत की आज़ादी नहीं थी  उन्हें सिर्फ़ मेला लगाने का इजाजत थी। वहां सिर्फ चूड़ियां और कपड़े ही बेचने की अनुमति थी। तभी वहां के फेमिनिस्ट ग्रुप ने इस मेले के अंदर यह क्रांतिकारा नारा दिया ‘आज़ादी’ और भारत के कम्युनिस्टो नें लपक लिया। इसको पहली बार भारत में मशहूर एक्टिविस्ट कमला भसीन ने कोलकाता के जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोटेस्ट में यही नारा इस्तेमाल किया। इसके बाद हमने जेएनयू के प्रोटेस्ट उमर खालीद और कन्हैया कुमार को यह नारा लगाते देखा जो बिल्कुल देश विरोधी था। देखते ही देखते यह नारा आतंकी गतिविधियों का समर्थित नारा और जेएनयु में बदलाव का प्रतीक बनने लगा। अब बिहार में यह नारा गूंज रहा।  बिहार को अब लालू से कोई समस्या नहीं क्योंकि यादव और मुसलमानो का अंधा समर्थन अब उन्हें नहीं मिलता, लेकिन अब इसी जंगलराज की लपटे यादव और मुसलमान तक भी पहुंची। गुंडों के राज मे अब वे भी सुरक्षित नहीं बचे, लालटेन युग में सहाबुद्दीन गैंग के नेतृत्व में एक आईएस अफसर की बीवी का बलात्कार होता रहा और वह ठोकरे खाता रहा। जमशेदपुर के परिवार ने सुबह होते ही अपना घर खाली कर दिया क्योंकि रात के समय कुछ गुंडों ने उस घर के बाहर तमाशा किया और अपनी बेटी देने को कहा। कश्मीरी पंडितो का पलायन पूरी दुनिया ने देखा मगर बिहार से  बिहारियों का पलायन अब तक किसी को समझ नहीं आया । लालू जेल गया तो अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया, लूट का अब एक नया सैलाब आया। सन 2000 मे किसी को बहुमत नहीं मिला, लेकिन यदि झारखंड अलग हो जाता तो जो सीटें शेष बचती उन पर राजद बहुमत मे आ जाती। ठीक इसी तरह आज की सभी समस्याओ की जड़ 1989 के चुनाव मे है, चंद्र शेखर को ठेंगा बताकर वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया और तब चंद्र शेखर के बदले की आग ने उत्तरप्रदेश और बिहार को मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव नाम का ज़ख्म दिया। वो ज़ख्म जिससे अब दोनों राज्य उभर तो रहे है मगर जातिवाद का जहर चरम पर है । तब चंद्रशेखर ने वीपी द्वारा नापसंद इन दो नेताओं को एक – एक राज्य थमाये थे, कैसे तो उसकी कहानी अलग है इस कहानी का विलेन बिहार का लालू है। 1990 मे राजनीतिक प्रबंधन से बिहार का मुख्यमंत्री बना, एक साल बाद भारत का बाजार विश्व के लिए खुला तो सभी राज्य विदेशी कम्पनियो के लिए लपक पड़े। लेकिन बिहार मे लालू ने कहा विकास नहीं सम्मान चाहिए, नतीजा ये हुआ कि अगले 15 साल मे बिहार को ना विकास मिला ना सम्मान। लालू शुरुआत मे अच्छे नेताओं मे गिना जाता था, अच्छा इसलिए कि गरीबो के बीच रहता था, गरीब बच्चो को मोटर से नहलाने पहुँच जाता था और सबसे बढ़कर अफसरों को लताड़ लगाता था।

                              1997 मे लालू को जनता दल से अलग होकर राजद की स्थापना करनी पड़ी, इसके बाद तो स्थिति बदतर होती गयी क्योंकि राजद  के कार्यकर्ता वे बने जो अपने अपने इलाको मे दबंग थे। मेरी यह निजी राय है कि बिहार बीजेपी के लिए फिट नहीं है, क्योंकि बीजेपी का मतलब इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण होता है इसलिए नितीश को ही मुख्यमंत्री रहने दीजिये। इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आपको तोड़ फोड़ करनी पड़ती है और बिहार मे यह तोड़फोड़ भी जातिगत समीकरण के तराजू मे तौली जाती है। जमीने आज भी सवर्णों के पास है कुछ किया तो वे ही अगले चुनाव मे जंगलराज के इच्छुक हो जायेंगे इसलिए यह बंगाल और केरल से भी ज्यादा पेचीदा राज्य है।लड़कियों को पढ़ना लिखना रोकना पड़ा क्योंकि स्कूल के बाहर इन्हीं  के गुंडे खडे होते थे, पुलिस बेबस थी।मेरी तरह जो लोग बिहार से नहीं है उन्हें ये सब थोड़ा विचित्र लगे मगर बिहार मे ये सब बहुत बड़े विकास के मापदंड है इसलिए ये बदहाली भी है। 1995 मे जनता दल दोबारा बिहार जीता, ये लालू की अपनी दम पर पहली और आखिरी जीत थी। 1996 लोकसभा चुनाव मे जनता दल तीसरी सबसे बड़ी पार्टी था और बीजेपी सबसे बड़ी। कांग्रेस जनता दल के नेतृत्व मे बने संयुक्त मोर्चा को समर्थन दे रही थी, लालू का नाम प्रधानमंत्री के लिए भी उछला और फिर वही हुआ जो होता आया है, असीमित शक्तियां भ्रष्ट बना देती है। हालांकि लालू ने चारा घोटाला पहले से शुरू कर दिया था, बचपन मे अगड़ी जातियों द्वारा अपमानित लालू अब अगड़ो मे दुश्मन ढूंढने लगा। जंगलराज का नया वर्जन अगले चुनाव मे भी प्रस्तुत है। तेजस्वी ने हर महिला को 2500 रूपये देने का वादा किया है, मध्यप्रदेश का बजट बिहार से दोगुना और आबादी आधी है मगर उन्हें 1500 रूपये देने मे अब जान निकल रही है। ये कैसे दे देगा? निश्चय ही विरोध करने आयी महिलाये अपराधों का भाजक बनेगी। बिहार मे भयावह नरसंहार चालू हुए, क्या सवर्ण क्या दलित इराक और सीरिया की तरह वहाँ वॉर गैंग्स बन गयी और आपस मे लड़ने लगी। लालू को इतने जंगलराज के बाद भी जो सीटें मिल रही थी उनमे दो कारण मुख्य थे, पहला तो बूथ लुटे जा रहे थे और दूसरा बिहार का सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा है कि यहाँ भगवान कृष्ण भी शायद चुनाव हार जाए क्योंकि उनसे पूछा जाएगा कि आखिर आपने यादव होकर कंस को क्यों मारा?  जिस दिन नीतीश कुमार को बिहार मिली थीं उस दिन बीजेपी के दफ्तरो मे दिवाली मनाई गयी, बिहार के उन घरो मे भी दिये जलाये गए जिन्होंने 15 साल के जंगलराज मे अपना सब कुछ खो दिया था। कई विस्थापित लोग वापस भी लौटे और स्थिति काफ़ी हद तक काबू मे आयी। नीतीश कुमार मे लाख दोष हो मगर उन्हें बिहार का हीरो कहना पड़ेगा, उन्होंने जातिवाद में जबरदस्त सेंध लगाई तब जब बीजेपी बिहार के जाति समीकरण को नहीं भेद पा रही थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *