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श्यामा

माता-पिता बहुत देखभाल करने के बाद अपनी बेटी का रिश्ता कहीं पर करते हैं। किसी के भी माथे पर यह नहीं लिखा होता कि वह कैसा इंसान है। ऐसे ही श्यामा के मां बाप भी अपनी बेटी के लिए कोई एक अच्छा सा रिश्ता तलाश रहे थे।
“अरे भाई कोई अच्छा रिश्ता हो तो बताओ, श्यामा बिटिया इस साल बी.ए. पास कर ली है और अब बी.एड. की तैयारी भी कर रही है।”सोहन बाबू ने अपने परम मित्र श्याम लाल से कहा। वे अपनी बेटी की शादी उसके बी.एड. करने के साथ ही साथ कर देना चाहते थे। श्यामा उनकी इकलौती संतान थी। एक बेटा विलास भी था जिसे उन्होंने गोद ले रखा था। कानपुर के किदवई नगर में उनकी एक आलीशान कोठी थी। घर में तीन चार नौकर हमेशा रहते थे। उनके पास अथाह पैसा था, इसी कारण वे रिश्ता भी ऐसा चाहते थे जो सर्वगुण संपन्न हो। उस लड़के के पास सुन्दरता के साथ-साथ सम्पन्नता भी होनी चाहिए । वह डॉक्टर, इंजीनियर या किसी बड़े पद पर कार्यरत भी होना चाहिए।
” लड़का तो है एक लेकिन उनसे बात करनी पड़ेगी।उनसे बात करके फिर मैं आपको बताता हूंँ।”
श्याम लाल ने कहा।
“अरे फिर भी कुछ तो बताओ उसके बारे में।” सोहन बाबू को जब भी कोई रिश्ता बताता वे बहुत ही बारीकी से उसके बारे में जानकारी हासिल किया करते थे।
लड़का तो जैसा कि तुम चाहते हो डॉक्टर है। लड़का केवल दो भाई ही हैं, उसपर अन्य कोई भी जिम्मेदारी भी नहीं है , मतलब उनकी कोई बहन भी शादी के लिए नहीं है। बड़ी बहन की शादी हो चुकी है। उसके पिता जी भी अलीगढ़ में किसी इन्टर कॉलेज में लेक्चरर हैं। लड़के को भी मैंने देखा है, वह बहुत सुन्दर है।
“हांँ तो तुम जल्दी ही वहांँ चले जाना और फिर बिटिया के बारे में भी बता देना। वे लोग जितना भी चाहेंगे मैं देने के लिए तैयार हूंँ।” सोहन बाबू ने कहा।
“ठीक है, परेशान मत हो, अबकी बार जब भी मैं अलीगढ़ जाऊंँगा, उनसे बिटिया की बात जरूर चलाऊंँगा।” श्याम लाल ने अपने मित्र के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
अगर देखा जाए तो सभी रिश्तों में एक मित्र का ही रिश्ता ऐसा होता है जिससे इंसान खुलकर बात कर सकता है। किसी भी तरह की समस्या उसके समक्ष रख सकता है और मित्र भी अपने मित्र की परेशानियों को अपना समझ कर उनका निदान करने की चेष्टा करता है। हालांकि आज के जमाने में इस तरह के मित्रों की संख्या तो बहुत कम ही मिलती है।
सोहन बाबू ने भी अपने मित्र को अपनी परेशानी बता कर राहत की सांँस ली कि उनका यह मित्र उनकी समस्या का समाधान अवश्य ही निकालेगा।
पास में ही बैठी मोहिनी देवी भी उन लोगों के
हां में हां मिला रही थी लेकिन उनको एक बात की
चिन्ता थी कि बेटी श्यामा इतनी मोटी है, पढ़ाई भी
कोई खास नहीं की है। क्या पैसे के बल पर ही यह अनमेल रिश्ता टिक पायेगा। उन्होंने भी अपनी यह चिंता जाहिर ही कर दी। श्याम लाल के जाने के बाद उन्होंने डरते-डरते अपनी बात पति के सामने रख ही दी।
“सुनो जी, तुम जो ये सुन्दर लड़का और डॉक्टर, इंजीनियर करते रहते हो वह भी तो अपने लिए सुन्दर लड़की और डॉक्टर, इंजीनियर लड़की तलाशेगा।” ऐसा भी तो सोचा जा सकता है।
“तुम भी पता नहीं कैसी कैसी बातें करने लगती हो।आज के समय में सबसे बड़ा पैसा है। पैसे से तो क्या नहीं हो सकता है? अब तुम बस देखती रहो।” सोहन बाबू ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा।

       सोहन बाबू कानपुर शहर के नामी-गिरामी 

व्यक्ति थे। उनकी कपड़ों की बहुत बड़ी दुकान थी जिसपर काम करने वाले दस बारह कर्मचारी काम
किया करते थे।‌ उनके साथ ही साथ बीए करने के बाद उनका गोद लिया हुआ बेटा विलास भी दुकान को संँभालने लगा था। आमदनी भी काफी अच्छी थी सो दान पुण्य का काम भी खूब किया करते थे। तीन चार मकान भी बनवा कर किराए पर उठा रखा था। उसका किराया भी अच्छा खासा आता था। कुल मिलाकर लक्ष्मी जी की उनपर बहुत कृपा थी। उनमें बस एक ही कमी थी कि वे सोचते थे कि पैसों के बल पर सबकुछ खरीदा जा सकता है।
श्यामा पढ़ने में मीडियम ही थी न बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी सो कमी क्या होती है यह भी नहीं पता था। घर के काम-काज नौकर ही करते थे तो उसने कभी भी घर का काम भी नहीं किया था। उसे तो केवल पढ़ने और खाने व खेलने के अलावा कुछ भी नहीं पता था। मांँ ने उसे एक गिलास पानी भी उसके हाथ में ही थमाया था वह इतनी दुलारी थी। उसकी एक आदत यह भी थी कि ज्यादातर वह सोई ही रहती थी। इसका प्रभाव भी उसके शरीर पर ग़लत ही पड़ा और वह दिन पर दिन मोटी होती चली गई। मांँ उसे हमेशा ही टोकती रहती, “श्यामा बेटा थोड़ा सुबह-शाम टहल लिया कर बेटा, कुछ व्यायाम भी करना सीख ले,तेरे साथ की सब लड़कियों को देख कितनी पतली-पतली सी हैं और तू है कि सबका ही वजन लिए चली जा रही है।”
मांँ तुम भी, रोज जाने क्या क्या कहने लगती हो।रोज सुबह-सुबह कौन उठता है भला? शाम को तुम्हारे साथ ही छत पर टहलती तो हूंँ। अब ये वजन बढ़ता ही जा रहा है तो इसमें भला मैं क्या करूंँ? श्यामा अपनी मांँ के गले से चिपकते हुए इस तरह से बोलती कि मांँ भी चुप लगा जाती।
इधर जबसे डॉक्टर साहब के रिश्ते की बात चल रही थी तब से तो श्यामा ने रस्सी कूदना और टहलना सभी कुछ चालू कर दिया था। सुबह-सुबह नींबू पानी पीना, बहुत कम खाना खाना, दोपहर को केवल सलाद खाना सभी कुछ तिकड़म वह लगा रही थी लेकिन वज़न था कि टस से मस होने का नाम नहीं ले रहा था। हांँ आंँखों के नीचे काला -पन जरूर छाने लगा था। चेहरा भी बुझा-बुझा सा
नज़र आने लगा था। उसकी हालत देखकर मांँ ने उसे अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया, अच्छे से अच्छे डाइटीशियन को दिखाया पर उसके बढ़ते वजन को कम करने में सभी नाकाम रहे। कुछ दिन थोड़ा-सा सा वज़न कम होता और फिर किलो डेढ़ किलो बढ़ जाता।
लड़के वालों को श्यामा के फोटो के साथ ही साथ उसका पूरा बायोडाटा तैयार करा कर भेजा गया था और साथ में ही उसकी जन्म कुंडली भी। लड़के को लड़की की फोटो और पढ़ाई कुछ भी नहीं पसन्द था। फिर भी उन लोगों ने इस रिश्ते के लिए हांँ कर दिया था। वास्तव मे लड़के वालों को लड़की से ज्यादा उसकी प्रापर्टी में ज्यादा दिलचस्पी थी। लड़का डॉक्टर तो बन गया था किन्तु अपना नर्सिंग होम खोलने के लिए उनके पास पैसा नहीं था। अगर यह रिश्ता हो जाता तो लड़के के लिए नर्सिंग होम खुलवाने के लिए उसके ससुर स्वयं ही आगे आ जाते या कहें कि उनको आना ही पड़ता आखिर उनकीअपनी बेटी के भविष्य का सवाल जो होता।
लड़के वालों ने रिश्ते के लिए हांँ कह दिया। अब
लड़का देखने जाना था जो एक औपचारिकता मात्र ही कहा जा सकता था।
लड़के को देखने जाने के लिए पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाया गया। अब चार- पांँच रिश्तेदारों और बड़े लोगों को साथ में लेकर सोहन बाबू लड़के वालों के यहांँ लड़के को देखने पहुंँच गए।‌ लड़के के पिता विरेन्द्र प्रसाद ने उन लोगों का खूब बढ़ चढ़ कर स्वागत किया।उनका चार कमरों का दो मंजिला मकान था। विरेन्द्र जी के साथ ही लड़के की मांँ रौशनी जी‌ भी उन लोगों के आवभगत में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं।‌ उनका बेटा विराट तो इतना सीधा नजर आ रहा था कि लग रहा था कि उससे अच्छा रिश्ता तो मिल ही नहीं सकता है। हांँ पैसों के मामले में वे लोग उनसे बहुत ही कम थे।
“बेटा आप ने आगे क्या सोचा है?” सोहन बाबू ने विराट से पूछा।
“जी वैसे तो नौकरी तलाश रहा हूंँ लेकिन अगर बजट बन गया तो पापा जी नर्सिंग होम भीखुलवाने
का प्लान बना रहे हैं।” विराट ने कहा।
” विरेन्द्र बाबू आप इस विषय में क्या कह रहे हैं?”सोहन बाबू के साथ गए उनके एक रिश्तेदार ने विरेन्द्र जी से पूछ ही लिया।
अब आपको क्या बताऊंँ, मैं तो एक प्रवक्ता ही रहा हूंँ। इतना पैसा तो नहीं इकट्ठा कर सका हूंँ, जो पैसे थे वे इनकी डॉक्टरी की पढ़ाई में लग गया है। गांँव में कुछ खेती है, उसी को हटाकर इनके लिए कोई छोटा मोटा नर्सिंग होम खुलवा देंगे, बाद में उसे ये बढ़ाते रहेंगे।
“अरे विरेन्द्र बाबू अगर सब कुछ ठीक रहा तो फिर आपको किसी भी खेत को बेचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।” सोहन बाबू ने अपना पांँसा फेंक दिया था।
नर्सिंग होम खुलवाना विरेन्द्र जी के लिए दिवास्वप्न के जैसा ही था। यह तो उन्होंने उन लोगों को सुनाने के लिए खेत बेच कर नर्सिंग होम खोलने के लिए तो जरूर कह दिया था परन्तु वास्तव में तो सच्चाई कुछ और ही थी। विरेन्द्र बाबू के पास गांँव में नाम मात्र की ही खेती थी।
बातचीत खत्म होने के बाद खाना खाने पीने का दौर चला और फिर सोहन बाबू ने लड़के वालों को लड़की देखने आने के लिए न्यौता दे दिया –
“आप लोग भी आइए और मेरी बेटी को देख कर सन्तुष्ट हो जाइए फिर आगे की बात आगे बढ़ाई जाए।”
“जी जरूर, जल्दी ही शुभ मुहूर्त देखकर हम लोग आपकी बेटी को देखने आ जाएंँगे।” विरेन्द्र प्रसाद जी ने कहा।
उन लोगों के जाने के बाद वे सभी लोग बहुत ही खुश नजर आ रहे थे। विराट के मन में अपने नर्सिंग होम का सपना साकार होता दिखाई दे रहा था। विरेन्द्र प्रसाद और रौशनी देवी भी खुशी से फूले न समा रहे थे आखिर इतने बड़े घर का रिश्ता जो आया था। वे लोग अब लड़की को देखने जाने के लिए शुभ मुहूर्त के इन्तजार में थे।‌ रौशनी देवी ने लड़की को देने के लिए सोने की चेन , अंँगूठी और बनारसी साड़ी भी खरीद ली। उनके लिए लड़की कैसी है कैसी नहीं यह मायने नहीं रखता था, मायने रखता था तो लड़की वाले कितना दहेज दे सकते हैं। यहां तो लड़की वाले नर्सिंग होम ही खुलवाने के लिए तैयार थे उनको अब और क्या चाहिए था।
शुभ मुहूर्त देखकर विरेन्द्र प्रसाद अपने बेटे विराट,पत्नी रौशनी तथा छोटे बेटे सोहन के साथ अलीगढ़ से कानपुर लड़की देखने के लिए आ गए। सभी बहुत खुश थे। चाय नाश्ते के बाद सोहन बाबू ने अपनी पत्नी मोहिनी से बेटी श्यामा को लाने के लिए कहा। मोहिनी ने ब्युटी पार्लर से एक लड़की को खास तौर पर श्यामा को तैयार करने के लिए बुलाया था। उनका उद्देश्य था कि वह श्यामा को इस तरह से तैयार करें कि वह थोड़ी पतली नजर आये और वह हल्के से मेकअप में सुन्दर भी लगे। श्यामा ने गुलाबी सूट पहन रखा था जो किउसपर बहुत सुन्दर लग रहा था। शरीर तो मेकअप से
क्या ही छिपता पर हल्के रंग के गाउन ड्रेस में वह लम्बी और थोड़ी कम मोटी नजर आ रही थी। हल्के गुलाबी ड्रेस के साथ उसी रंग का कढ़ाई किया हुआ दुपट्टा और भी सुंदर लग रहा था।‌
श्यामा ने आकर सबको नमस्ते किया और फिर मांँ के साथ ही खड़ी हो गई।
“अरे बेटा बैठो ,आप खड़ी क्यों हो?” रौशनी जी ने श्यामा को आगे बढ़ कर अपने पास में बैठा लिया। मोहिनी जी भी अपनी जगह बैठ गई।
इस समय सभी की आंँखों पर बस पैसा ही छाया हुआ था सो उनको न तो श्यामा की पढ़ाई के बारे में ही कोई दिलचस्पी थी और न ही उसके बढ़े हुए वजन से ही कोई एतराज़ था। गोरे चिट्टे सुन्दर और हैंडसम बेटे के लिए मोटी और सांँवली तथा कम लम्बाई की लड़की में ही सारी खूबियांँ नज़र आ रही थी। जैसा कि उन्होंने पहले से ही मन बना रखा था वे सोहन बाबू से बोले, “मुझे तो आपकी लड़की बहुत पसन्द है। इसे मैं अपनी बेटी बना कर रखूंगा। किसी भी तरह की कमी आपकी बेटी को नहीं होने पायेगी।आप आज्ञा दें तो आगे की विधि सम्पन्न कर लिया जाए।
“अरे क्यों नहीं, अब तो यह आपकी बेटी है। मैं अभी सब इन्तज़ाम करवा देता हूंँ।”सोहन बाबू ने कहा।
रौशनी देवी सब कुछ अपने साथ ही ले आयी थीं, कुछ चीजें जो नहीं थी उसकी व्यवस्था मोहिनी जी ने कर दिया।
रोशनी जी ने श्यामा के रोके की विधि सम्पन्न की उन्होंने उसके गले में दो तोले की सोने की चेन पहनाई अंँगुली में अंँगूठी पहनाई तथा उसकी गोद में पांँच बनारसी साड़ी तथा नारियल रखकर टीका लगाया।
“बहन जी,आज से आपकी बेटी मेरी हुई। यह तो ऐसे ही रोका किया है सगाई की रस्म धूमधाम से की जायेगी।” रोशनी जी ने मोहिनी जी से कहा। सभी आपस में गले मिले। सोहन बाबू ने भी लड़के और उसके भाई तथा होने वाले समधी तथा समधन सभी को सोने की चेन तथा कपड़े उपहार में दिए। जितना विरेन्द्र प्रसाद ने ख़र्च किया था उससे चार गुना बढ़ा कर सोहन बाबू ने उन लोगों को उपहार स्वरूप दे दिया। वे लोग खुशी-खुशी अपने घर के लिए रवाना हुए। जाने से पहले डॉक्टर साहब ने श्यामा को अपना फ़ोन नंबर भी दे दिया, “जब जी चाहे बात कर लिया कीजिएगा, मुझे बहुत खुशी होगी।”
श्यामा ने भी शर्माते हुए नम्बर नोट किया और‌ वादा किया कि वह उसे फोन करेगी।
श्यामा की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। उसकी सहेलियांँ उसे मोटी होने के नाते जाने क्या-क्या सुनाती रहती थीं, लेकिन उसकी किस्मत देखो कि कितना सुन्दर, मृदुभाषी और डॉक्टर लड़का उसका पति होने जा रहा है। वह अपनी सारी सहेलियों के पास जाकर उनको सारी बातें बताती और अपनी खुशी का इजहार करते डोल रही थी। घर पर भी जो आता उससे सोहन बाबू और मोहिनी देवी इसी रिश्ते का जिक्र करते और
इतराते फिरते।
अब सगाई की रश्म किसी अच्छे होटल में धूम-धाम से करने की योजना बनाई जाने लगी थी ।
“अरे बेटा विलास किसी अच्छे होटल की व्यवस्था करो और बाकी की तैयारी भी अपने ही देख-रेख में करना।” सोहन बाबू ने समझाते हुए अपने बेटे विलास से कहा।
“जी पापा जी आप चिन्ता न करें, जैसा आप और मम्मी जी चाहेंगे, उससे बढ़कर ही काम होगा।” विलास ने जवाब दिया।‌ विलास अपने माता-पिता का बहुत ही ध्यान रखता था और उतना ही अपनी बड़ी बहन श्यामा का भी। बहन के ऊपर तो वह अपनी जान ही छिड़कता था। श्यामा दीदी के की किसी भी चीज की ख्वाहिश हो और वह न पूरी हो ऐसा हो ही नहीं सकता था। कानपुर के ही सिविल लाइन के जाने-माने होटल को सगाई के कार्यक्रम के लिए बुक किया गया था। लड़के तथा उसके घरवालों के लिए कपड़े ज़ेवर व सामान सभी कुछ ब्रांडेड और जानी-मानी दुकानों से खरीदी जा रही थी। बेटी के लिए डिजाइनर कपड़े ज़ेवर की सारी खरीददारी के साथ ही साथ एक माह पहले से ही
ब्युटिशियन बुक थी। इस सगाई की तैयारी भी ऐसी लग रही थी मानों किसी की शादी ही हो।
खूब धूमधाम से सगाई के कार्यक्रम का भव्य आयोजन हुआ। विरेन्द्र प्रसाद भी लड़की के लिए हीरे की अंँगूठी और गले का सेट लेकर आये थे। इधर से भी लड़के के लिए हीरे की अंँगूठी और चेन, सास के गले का सेट , देवर और ससुर के लिए गले की चेन तथा ब्रांडेड कपड़ों का इंतजाम किया गया था।
लड़के-लड़की ने एक दूसरे को अंँगूठी पहनाई और इसके साथ ही शादी ने अपनी आधी मंजिल तय कर ली। पंडित जी ने इसी समय शादी का एक शुभ मुहूर्त भी अपनी पोथी देखकर बता दिया। शादी का शुभ मुहूर्त ठीक पन्द्रह दिन बाद का ही निकला था।
सगाई में फिर वैसा ही हुआ जैसा कि लड़के वाले चाहते थे। सोहन बाबू और मोहिनी जी ने तो चौगुना खर्च किया था। विरेन्द्र प्रसाद के खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। बिना बोले सब-कुछ हासिल होता जा रहा था। लेकिन उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश नर्सिंग होम की थी जिसे वे लोग जल्दी से जल्दी प्राप्त कर लेना चाहते थे।
“भाई साहब अगर आप कहें तो नर्सिंग होम के लिए जमीन देख लूंँ। आखिर उसे बनने में भी समय लगेगा।” विरेन्द्र प्रसाद ने समय देखकर सोहन बाबू से अपनी इच्छा जाहिर कर दी।
“हांँ, हांँ क्यों नहीं आप जमीन देखते रहिए, जैसे ही किसी अच्छी जगह पर जमीन मिले मुझे तुरन्त सूचित कीजिएगा।” सोहन बाबू ने कहा।
“जी एकजमीन तो बहुत अच्छी जगह पर हैं पर उनकी कीमत ही आकाश छू रही है।” विरेन्द्र प्रसाद अब थोड़ा-सा खुलने लगे थे।
“उसकी चिंता आप मत कीजिएगा, दामाद जी का नर्सिंग होम अच्छी जगह पर ही बनेगा। मैं अभी आपको दस लाख का चेक दे रहा हूंँ जैसे ही कोई अच्छी जगह दिखाई दे, बयाना दे दीजिएगा। शादी के बाद बाकी चीजें देख लेंगे।” सोहन बाबू ने कहा
हांँ, हांँ क्यों नहीं। शादी की तैयारी में समय भी तो
लगता है।
विरेन्द्र प्रसाद के हाथ में दस लाख रुपए आ चुके थे। उनसे उन्होंने कुछ शादी की तैयारी में ख़र्च किया। कुछ पैसे नर्सिंग होम के लिए जमीन या किसी बने बनाए नर्सिंग होम के लिए बयाना देने के लिए सुरक्षित रख लिया।
इधर विराट के शादी की खबर पाकर उसकी प्रेमिका निशा उसपर विफर उठी, “विराट मैं यह क्या सुन रही हूंँ, तुम मुझे छोड़ कर शादी कर रहे हो?”
शादी नहीं प्रिये, तुम इसे एक समझौता समझ लो, तुम्हारा भी तो सपना है कि मेरा अपना नर्सिंग होम हो?
हांँ, सपना तो था पर उसके लिए तो तुम मुझे छोड़ कर शादी कर लोगे?
“अरे मेरी भोली निशा, फिर से कह रहा हूंँ, तुम मेरी हो और सदैव मेरी ही रहोगी। यह शादी तो मैं नर्सिंग होम खुलवाने के लिए कर रहा हूंँ। लड़की वाले मेरे लिए नर्सिंग होम बनवाने के लिए तैयार हैं। बस मुझे और क्या चाहिए। कुछ दिन बाद मैं उसे तलाक दे दूंँगा और फिर मैं तुमसे शादी कर लूंँगा।”
विराट ने निशा का हाथ पकड़कर कहा।
निशा भी उसे देखकर और उसकी प्लानिंग देखकर दंग रह गयी। फिर वह एक खिली हुई सी मुस्कान के साथ वहांँ से चली गई।
कहा तो यह जाता है कि जोड़ियांँ भगवान के घर से बनकर आती हैं पर शायद ऐसा नहीं है, दुनिया में कभी-कभी जोड़ियांँ बनाने में पैसा भी अपनी मुख्य भूमिका निभाता है। आगे चलकर इन शादियों का फिर चाहे जो भी हश्र होता हो।‌ कोई विवाह आजीवन चल भी जाता है तो कोई लालच की बलिवेदी पर बलि चढ़ जाता है।
श्यामा का विवाह धूमधाम से सम्पन्न हुआ। सोहन बाबू ने खूब लेन-देन किया जिसे देख कर सारे देखने वाले दंग रह गए ।
बेटी की विदाई के समय मोहिनी देवी अपनी बेटी को पकड़ कर फफककर रो पड़ीं, आखिरकार श्यामा उनकी इकलौती बेटी थी। सोहन बाबू ने विरेन्द्र प्रसाद का हाथ पकड़कर, उनके और रौशनी देवी की ओर देख कर कहा, “समधी साहब मेरी
श्यामा को कोई भी कष्ट मत देना, अगर आपको उससे कोई भी शिकायत हो तो मुझसे कहना मगर उसकी आंँखों में बिल्कुल भी आंँसू नहीं आना चाहिए।”
“अरे समधी जी अब आपकी बेटी अब मेरी बेटी है, उसे किसी भी तरह का कष्ट कभी भी नहीं होने देंगे।‌ यह मेरा आपसे वादा है।” विरेन्द्र प्रसाद जी ने कहा।
सोहन बाबू और मोहिनी ने यही सबकुछ अपने दामाद विराट से भी कहा,
“बेटा विराट , श्यामा से कोई भी गलती हो तो आप मुझसे कहना बेटा, मगर उसे कोई भी कष्ट न होने पाए।”
“कैसी बात करते हैं पापा जी, श्यामा को मेरे रहते कभी कोई कष्ट नहीं होगा। आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिएगा। उसके प्रति अब मेरी भी तो कुछ जिम्मेदारी है।” विराट कह तो रहा था मगर वहीं उसके अन्दर एक शातिर शैतान कुटिलता से मुस्कुरा रहा था।
भाई विलास तो श्यामा के साथ उसे पहुंँचाने के लिए उसकी ससुराल तक भी गया।
“दीदी अपना ध्यान रखना, सबसे मिलकरअच्छे से रहना। आपका जब जी चाहे आप फोन पर बात करती रहना। तुम वीडियो काल करना।”
“हांँ,हांँ भाई तू भी अपना और मम्मी पापा का ध्यान रखना। उनके खाने-पीने और दवा पर ध्यान देना।” श्यामा ने अपने भाई विलास को समझाया।
विरेन्द्र प्रसाद जी का मकान दुल्हन की तरह सजाया गया था। उनके सभी मेहमान और रिश्तेदार
विराट की ससुराल से मिले सामानों को देखकर तारीफों के पुल बांँध रहे थे। कुछ लोग ऊपर से तो तारीफ कर रहे थे और अन्दर ही अन्दर जले जा रहे थे। दिन भर लोगों का आना-जाना लगा ही रहा। शाम को रिसेप्शन भी बहुत अच्छे होटल में रखा गया था।
श्यामा का बेडरूम बहुत ही करीने से सजाया
गया था गुलाब के फूलों से पूरी सजावट की गयी थी। घर के सभी लोग श्यामा को खुश करने में लगे हुए थे। पति विराट ने भी उसे खूबसूरत गले का सेट दिया । वह रात में उसे कुछ जरूरी काम का हवाला देकर घर से बाहर चला गया।
“श्यामा आज ही मेरी एक बहुत ही जरूरी मीटिंग है, अगर तुम कहोगी तो मैं जाऊंँगा नहीं तो नहीं।”
“नहीं-नहीं, आप जरूर जाइए। जो काम जरूरी है उसे कैसे रोका जा सकता है?” श्यामा ने कहा
“लेकिन मम्मी-पापा को पता न चले नहीं तो वे मुझपर बहुत नाराज़ होंगे। मैं सुबह चार-पांँच बजे तक आ जाऊंँगा।” विराट ने कहा।
“जी बिल्कुल नहीं कहूंँगी, आप निश्चिंत होकर जाइए।” श्यामा ने मुस्कुराते हुए कहा।
विराट वहांँ से सबसे छिपकर बाहर निकल गया
बाहर उसके घर से कुछ दूरी पर उसकी प्राणप्रिया प्रेमिका निशा अपनी गाड़ी में उसका इन्तज़ार कर रही थी। वह जाकर उसकी गाड़ी में बैठ गया और निशा ने मुस्कुराते हुए कहा, “चलें?”
विराट ने उसका हाथ थामते हुए कहा,”चलो।”
विराट के जाने के बाद श्यामा भी कपड़े बदलकर सो गयी। सुबह वह जल्दी उठकर, स्नान करके बाहर निकली तो उसे सामने सासू मांँ दिखाई दीं। उनके चरण स्पर्श करके उसने मन्दिर के बारे में पूछा और फिर पूजा करके सासू मांँ के पास रसोई में चली गई।
“अरे बेटा, मैं हूंँ ना यहांँ तुम आराम करो। रात में
नींद ठीक से आयी थी? पहली बार मम्मी पापा से अलग हुई हो, मैं समझ सकती हूंँ बेटा।”
“आप भी तो मेरी मम्मी ही हैं, फिर चिंता किस बात की। अब तो मेरे पास दो-दो पापा जी और दो-दो मम्मी जी हैं।” श्यामा ने रौशनी देवी के गले लगते हुए कहा तो रौशनी जी भी श्यामा की समझदारी की कायल हो गईं।
विराट भी जो सुबह पांँच बजे चुपचाप कमरे में आ कर सो गया था, आंँख मलते हुए कमरे से बाहर निकलकर बोला, “मम्मी चाय बन गई?
“पहले नहा ले, फिर श्यामा चाय ले जाएगी।” मांँ ने कहा।
पग फेरों के लिए श्यामा का भाई विलास उसे लेने आया। मायके में सभी लोगों ने उससे उसके
ससुराल के बारे में पूछा, किसी ने उसके पति के बारे में पूछा, श्यामा सबसे अपने ससुराल की तो तारीफ करते नहीं थक रही थी। उसकी तारीफों से उसके माता-पिता को दिली सुकून मिल रहा था।
“अरे अभी एक दिन ही तो वहांँ रही हो, कुछ दिन वहांँ रुको फिर उन लोगों के बारे में सही जानकारी मिलेगी।” श्यामा की बुआ जी ने कहा।
“और भैया आप जो उन लोगों के लिए नर्सिंग होम खुलवा रहे हो वह श्यामा बिटिया के नाम ही करना उसकी रजिस्टरी श्यामा के ही नाम पर करना ध्यान से।” ललिता ने अपने छोटे भाई सोहन बाबू को समझाया।
“हांँ बहन जी, बिल्कुल सही कह रही हैं। इससे वे लोग बंँधे भी रहेंगे, अन्यथा इंसान कब पलटी मार ले उसका कोई भरोसा नहीं है।” श्याम लाल ने अपने मित्र को समझाते हुए कहा।
श्यामा की मांँ मोहिनी देवी और भाई विलास ने भी बुआ ललिता की बात का समर्थन किया।
पग फेरों में पति अपनी पत्नी को उसके मायके से ले जाने के लिए आता है। विराट भी पत्नी श्यामा को ले जाने के लिए आया। खूब धूमधाम से विदाई हुई और श्यामा को ढेर सारी हिदायतों के साथ उसे उसके मायके वालों ने विदा किया।
रास्ते में विराट ने श्यामा से कहा, “श्यामा मैं तुमसे जो कुछ भी कह रहा हूंँ, उसे तुम न तो मेरे माता-पिता से कहना और न ही अपने घर वालों से ही कहना।”
“जी आप बताइए, मैं किसी से भी कुछ नहीं कहूंँगी। ऐसी क्या बात है जो सबसे छिपानी है?आप की कोई सहेली है क्या?” श्यामा ने कहा
विराट चौंक पड़ा कि इसको कहीं निशा के बारे में पता तो नहीं चल गया। एकदम से उसके चेहरे पर हवाइयांँ-सी उड़ने लगीं।
“अरे मैं तो मजाक कर रही थी और आप बुरा मान गए, बताइए क्या बात है?” श्यामा ने विराट के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
“श्यामा मुझे एक बड़ी बीमारी है जिसके बारे में
मैंने अपने माता-पिता को भी नहीं बताया है। अगर
उनको मेरी बीमारी का पता चला तो वे टूट जाएंगे।
डॉक्टर ने मुझे दो साल विवाह करने से मना किया था पर तुम्हारे घर वालों के आगे मैं झुक गया।” अपनी कुटिलता को बेचारगी के आवरण से ढकते हुए उसने मासूमियत बिखेरते हुए श्यामा से पुनः कहा, श्यामा हम लोग दो साल तक एक साथ रहते हुए भी अलग-अलग ही रहेंगे। तुम इस बात की जानकारी किसी को भी नहीं दोगी। अन्यथा मैं अपनी जीवन लीला समाप्त कर लूंँगा।”
“कैसी बात करते हैं आप? श्यामा ने विराट के मुख पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
“आप जैसा कहेंगे वैसा ही होगा, आप बिल्कुल चिंता मत कीजिएगा।” श्यामा ने फिर कहा।
अब वे दोनों एक कमरे में अवश्य होते थे पर बिल्कुल अलग-अलग। विराट ज़्यादातर बहाने बना कर घर से बाहर ही जाता रहता था।
पग फेरों के रस्म के बाद श्यामा के पिताजी ने उन दोनों को बाहर कहीं घूमने जाने के लिए कहीं भेजने की योजना बनाई, “बेटा तुम लोग कहीं पर जाकर घूम आओ, जहांँ भी आपकी मर्जी हो।”यह सुनकर श्यामा की खुशी का ठिकाना न रहा पर विराट ने उस पर तुरंत ही विराम लगाते हुए कहा,
“पापा जी घूमना-फिरना तो होता रहेगा, पहले मैं एक बार सेटल हो जाऊंँ। मुझे अभी अपनी ही चिन्ता लगी हुई है। मुझसे मेरे माता-पिता की बहुत सारी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। पहले एक बार मेरा नर्सिंग होम खुल जाएऔर वह ठीक से चलने लगे, फिर तो हम लोग घूमने के लिए देश विदेश कहीं पर भी जा सकते हैं।”
“हांँ बेटा, आपका कहना भी सही है। चलो फिर नर्सिंग होम बन जाने दो उसके बाद ही कहीं पर जाना। काम तो प्रगति पर है जल्दी ही आपकी यह इच्छा भी पूरी हो जाएगी।” सोहन बाबू ने अपने दामाद विराट से कहा।
अलीगढ़ के बहुत ही अच्छे इलाके में सोहन बाबू नर्सिंग होम बनवा रहे थे। इस पर पानी की तरह पैसा लग रहा था। कुछ समय बाद नर्सिंग होम बनकर तैयार हो गया। इसके लिए बाहर से मंँहगी- मंँहगी मशीनें मंँगाई जा रही थी। विराट के ही साथ के कुछ डॉक्टर भी इसमें काम करने के लिए तैयार हो गए थे। डॉ निशा का नम्बर सबसे पहले था।
नर्सिंग होम श्यामा के नाम पर रखने पर विराट ने ऐतराज जताया, “पापाजी मम्मी पापा ने बहुत ही मेहनत से मुझे पढ़ाया है, अगर हम श्यामा के नाम नर्सिंग होम कर देंगे तो उनको बहुत ही बुरा लगेगा। आप अगर कहें तो मांँ के नाम पर इस नर्सिंग होम का नाम रख दिया जाए, आगे जैसी आपकी मर्जी।”
सोहन बाबू विराट की बातों का विरोध नहीं कर सके और नर्सिंग होम विराट की मांँ रौशनी जी‌ के नाम हो गया। “रौशनी नर्सिंग होम” नाम का बोर्ड अब नर्सिंग होम की शोभा बढ़ाने लगा था।
उन लोगों को बस यही तो चाहिए था, नर्सिंग होम अब अपने कब्जे में आ चुका था। उसकी पूरा रजिस्ट्रेशन विराट ने अपनी मांँ रौशनी देवी के नाम करवा लिया। अब तीनों का ही व्यवहार श्यामा के प्रति धीरे-धीरे बदलने लगा था। यही नहीं श्यामा यह जानकर आवाक थी कि विराट की प्रेमिका निशा के बारे में उसके माता-पिता तथा भाई तीनों को ही पता था। शादी की पहली रात भी वह सबकी जानकारी में ही बाहर गया था।
यही नहीं अब तो निशा खुले आम घर में आने लगी थी और घर वाले भी उसका खूब स्वागत सत्कार किया करते थे। निशा भी विराट के ही साथ पढ़ रही थी और उसके नर्सिंग होम में वह भी काम करने लगी थी।
मम्मी जी ये कौन हैं और इतना अधिक क्यों आती हैं?
“अरे बेटा यह भी हमारे नर्सिंग होम में विराट के साथ डॉक्टर हैं। डॉक्टर निशा है इनका नाम। यह विराट की बहुत अच्छी दोस्त हैं। ” रौशनी देवी ने
मुस्कुराते हुए श्यामा को जवाब दिया।
श्यामा को उन लोगों के बदले हुए रूप को देखकर आश्चर्य हो रहा था परन्तु वह कुछ कह भी नहीं सकती थी। उसके पिता जी ने तो इन लोगों पर अपना सब कुछ लुटा दिया था और अब अगर वे इन लोगों के बारे में इस तरह की बातें सुनेंगे तो उन पर क्या बीतेगी। श्यामा रोज खून का घूंँट पी कर रह जा रही थी।
विराट निशा के साथ तो खूब हंँस-हंँसकर बातें करता था किन्तु श्यामा से से उसकी बातचीत हांँ या ना पर सिमट कर ही रह गई थी। वह जब भी कहीं घूमने जाने की बात करती विराट किसी न किसी काम का बहाना बना कर टाल दिया करता थाकिन्तु वहीं निशा के आने पर उसके पास समय ही समय होता था। ज्यादातर वे दोनों उसके सामने ही उसके ही पिता जी के द्वारा दी गई गाड़ी में बैठ कर घूमने निकल जाते और वह अपने कमरे को बन्द कर बस रोती ही रह जाती थी।
श्यामा ने यह सब कुछ अपना भाग्य मान लिया था और सास ससुर की सेवा में ही लगी रहती थी। सास-ससुर ने भी उसको परेशान करना शुरू कर दिया था। उसके हर काम में मीन-मेख निकाल कर उसे कुछ न कुछ सुनाया ही करते थे। कभी वे उसके मोटापे को लेकर तो कभी पढ़ाई को लेकर भी ताने मारा करते थे।
“इतना सुन्दर और हैंडसम मेरा बेटा, जाने कैसी मोटी के पाले पड़ गया है? इसके लिए तो बहुत सारे रिश्ते आये थे हम लोगों की ही बुद्धि पर पत्थर पड़ा हुआ था।”
श्यामा भी कई बार जवाब दे ही देती थी, “मम्मी जी आप पर कोई दबाव तो था नहीं, आपने तो बकायदा देखभाल कर शादी की थी और आज मुझमें ही कमी निकाल रही हैं।” इसके साथ ही वह अपने कमरे में जाकर जी भरकर रो लेती थी लेकिन अपने माता-पिता या भाई को कुछ भी बताने का साहस वह नहीं बटोर पा रही थी।
एक दिन रात में निशा और विराट के बीच
झड़प होते सुनकर वह चुपचाप नीचे ड्राइंगरुम में उनके बीच हो रही बात को सुनने लगी।
“अब तो तुमको मुझसे शादी करनी ही पड़ेगी, मैं अब और इंतज़ार नहीं कर सकती और न ही इस बच्चे को मैं हटाऊंँगी।” निशा ने विराट से कहा।
“बस कुछ दिन और ठहर जाओ निशा, नर्सिंग होम के लिए कुछ जरूरी सामान मंँगाना है इसके बाप से, वह मंँगवा लूंँ फिर इसे ही बीच से हटा देंगे और हम दोनों शादी कर लेंगे।” विराट ने निशा को समझाते हुए कहा।
श्यामा के अन्दर अब इससे आगे की बात सुनने का साहस नहीं बचा था। वह वहांँ से चुपचाप
अपने कमरे में चली आई‌। उसने शान्त दिमाग से अपने सारे गहने,और नकदी अपनी अटैची में भर लिया और अपने भाई को चुपचाप फ़ोन करके बुला लिया।
“भाई तुम कोई भी बहाना बना कर मुझे कल सुबह-सुबह ही यहांँ से ले चलो, बाकी सारी बातें मैं तुमको घर आने पर ही बताऊंँगी।
विलास ने भी बहन श्यामा के कहने के अनुसार ही सब कुछ किया। वह दूसरे दिन सुबह-सुबह ही श्यामा के ससुराल पहुंँच गया।
“मम्मी जी, मांँ की तबियत ठीक नहीं है, मैं श्यामा दीदी को कुछ दिनों के लिए ले जाने के लिए आया हूंँ। फिर मैं स्वयं इनको छोड़ जाऊंँगा।” विलास ने श्यामा की सास रोशनी जी से कहा।
“अरे क्यों नहीं बेटा, आप इसे ले जाओ। जाकर
बहन जी के स्वास्थ्य का समाचार देना। मैं अभी इसकी विदाई की व्यवस्था करती हूंँ।”
विलास के मन में प्रश्न तो बहुत सारे थे किन्तु उसने उन सब पर लगाम लगा रखी थी। उसने रोशनी जी से बस इतना ही कहा,
“कुछ नहीं मम्मी जी, बस हम लोग अब तुरन्त निकलेंगे। दीदी आप अपना सामान रख लो,हम लोग अभी निकलेंगे। ड्राइवर इंतजार कर रहा है ‌।”
विलास ने श्यामा के कमरे में जाकर स्वयं उसकी अटैची उठाई और ले जाकर गाड़ी में रखा। श्यामा ने जाते हुए किसी की तरफ़ नजर उठाकर भी नहीं देखा।रौशनी देवी दरवाजे तक छोड़ने आई और ससुर जी तो ड्राइंगरुम में ही बैठे रहे। विराट भी अभी तक घर नहीं आया था। कई बार विराट अपने नर्सिंग होम से सीधे निशा के घर चला जाता था। विलास ने बहन को गाड़ी में बैठने के लिएकहा, “बैठो दीदी।” श्यामा गाड़ी में बैठ गई। उसने एक नजर अपने ससुराल के मकान पर डाली।‌उसकी आंँखें भर आई थीं। गाड़ी अब आगे बढ़ गयी थी।
मायके में पहुंँचते ही श्यामा के सब्र का सारा
बांँध ही टूट गया। वह चाहते हुए भी स्वयं को नहीं संँभाल सकी और मांँ के गले से लग कर फूट -फूट कर रो पड़ी।
“क्या हुआ श्यामा कुछ बता तो सही बेटा।” उसकी मांँ उसे इस तरह रोते हुए देखकर विह्वल हो उठीं थीं।
“हांँ दीदी बताओ तो सही क्या हुआ है।” विलास ने
अपनी बहन के आंँखों से बहते आंँसुओं को पोंछते हुए कहा।
भाई उन लोगों ने हम सब को धोखा दिया है। उन्होंने केवल नर्सिंग होम खुलवाने के लालच में आकर मुझसे शादी की थी।
इसके बाद रात में विराट और निशा के बीच हुए पूरी बातचीत की रिकार्डिंग उन लोगों को सुना दी।भाई मैंने रात में कुछ शोर-शराबा सुना तो ड्राइंग रूम की ओर बढ़ी किन्तु वहांँ पर निशा और विराट के बीच बहस होते देख कर मैंने छिपकर उसकी रिकार्डिंग कर ली और चुपचाप अपने कमरे में चली गई। फिर भाई आपको मैंने फोन किया था।
श्यामा ने अपने ससुराल वालों की और पति की सारी करतूत अपने माता-पिता और भाई के सामने रख दिया था।‌उसने शादी के पहले दिन से लेकर आखिर तक की सारी बातें मांँ को ज्यों का त्यों सुना दिया। मांँ भी उन सब बातों को सुनकर आवाक सी थीं।
“बेटा तुम को इन सब बातों की जानकारी कम से कम मुझे तो देनी ही चाहिए थी। तुम सब कुछ अकेले ही झेलती रही।” मांँ ने भर्राई हुई आवाज में कहा,उनकी आंँखों से आंँसू बह रहा था।
“पिता जी अब आप उन लोगों के लिए कोई भी सामान मत मंँगाना और अगर आर्डर दिया भी हो तो कैंसिल करा दीजिए।” श्यामा ने अपने पिता को आगाह किया।
श्यामा फिर मांँ की ओर घूमती हुई बोली,”मम्मी मैंने अपनी अटैची में रात में ही अपने सारे जेवरात और सारे पैसे रख लिए थे। अपने बहुत से मंँहगे कपड़े भी मैंने रख लिये थे। श्यामा अपने नुकसान का भारपाई करना चाहती थी, मगर उसकी जिंदगी के साथ हुए धोखे की भारपाई इससे भला कैसे की जा सकती थी?
‌ सोहन बाबू बिल्कुल सन्नाटे में आ गए।‌ कोई इतनी बड़ी चाल भी चल सकता है। वे एक दो दिन के अन्दर ही विराट के नर्सिंग होम के लिए करोड़ों का सामान बाहर से इम्पोर्ट करवाने वाले थे। कम से कम इस नुकसान से तो वे बच गए। उन्होंने श्यामा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा,”मेरी बहादुर बेटी, तुमने बहुत ही समझदारी से काम लिया है बेटा। मैं इन लोगों को अच्छी सबक सिखाऊंँगा।” फिर वे अपने बेटे विलास से बोले, बेटे तुम कोई अच्छे से अच्छा वकील करो और कल ही इन कमीनों के यहांँ
डिवोर्स पेपर जाना चाहिए।
सोहन बाबू ने शहर के जाने-माने वकील से बात करके श्यामा से डिवोर्स पेपर पर साइन करा कर उसके ससुराल वालों के पास भेज दिया। इधर विराट खुश था कि उसे नर्सिंग होम भी मिला और श्यामा से भी बिना कुछ तिकड़म के मुक्ति मिल गई। लेकिन श्यामा के पिता द्वारा दिए सामान को वापस करने तथा नर्सिंग होम का पैसा वापस करने में ही उन लोगों की हालत खराब होने लगी। जेवर भी उन लोगों के हाथ नहीं लग पाया था।
श्यामा ने यहांँ होशियारी से काम करके अपने जान की भी रक्षा की और अपना कुछ सामान भी बचा लिया था।
कोर्ट कचहरी के धक्के खाते हुए विराट के घरवालों तथा विराट को औने-पौने दाम मे नर्सिंग होम भी बेचना पड़ा। अब वह किसी दूसरे साथी के नर्सिंग होम में काम कर रहा था। उसकी प्रेमिका भी उसके साथ दूसरे नर्सिंग होम में काम कर रही थी। विराट के घरवालों ने सुलह करने की बहुत कोशिश की मगर किसी को एक बार धोखा दिया जा सकता है,बार-बार नहीं।
डिवोर्स मिलने के बाद श्यामा ने बीएड किया ही था उसने नौकरी के लिए आवेदन दे दिया। यहांँ उसकी किस्मत ने साथ दिया और वह सरकारी उच्चतम विद्यालय में प्रवक्ता के पद हेतु चयनित हो गई। उसके ही विद्यालय में उसके पढ़ाने वाले एक अध्यापक ने श्यामा के पिता से उसका हाथ मांँग लिया। अब वह अपने परिवार में पूरी तरह खुश है और अपने पैरों पर भी खड़ी है। पुराने दिनों को उसने एक बुरा स्वप्न समझकर भुला दिया है फिर भी कभी-कभी वे यादें उसके मन में जाग कर उसे पीड़ा दे जाती हैं।

डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली

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