कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
एक एक कर के बीत गया एक और साल और फिर आ गई दीपावली । जगमग रोशनी से जगमग होने लगे हें घर आंगन । आंगन तो अब रहे नहीं, कांक्रीट के जगल हमने पैदा कर दिए हैं । माटी के आंगन में माटी के दिए की मध्यम रोशनी कभी करती थी अंधियारे भरे घर में उजियारा अब तो लाइटिंग की चकाचौंध में हम केवल दीपोत्सव मना लेने का अहसास भर कर लेते हैं । दिए भले ही हम सोशल मीडिया की मार में माटी के ले आये हों पर इन दियों में माटी जस भाव कहां भर पा रहे हैं । दीपावाली भी तो हमारे अहंकार को दिखाने का माध्यम बन गई हैं । ऊंची-ऊंची बिल्डिगों में रंगबिरंगी लाइटें हमारे धनाड्य होने का प्रतिबिम्ब ही तो बनाती हैंं और टोकरी भर पटाखे तेज आवाज में कर्कश ध्वनि कर हमारी चौड़ी छाती को और चौड़ा कर देती है । हमारे तीज-त्यौहार हमें आनंद के वातावरण में ले जाते हैं ताकि हमारे दुख-दर्द कम हो जाएं ताकि उदासी भरे चेहरे पर क्षणिक ही सही मुस्कुराहट आ जाए? घर के बेरोजगार युवाओं के चेहरे पर मुसकान आना जरूरी है ताकि उसकी निराशा कुछ तो कम हो । नौकरी हें कहां जो मिलेगी, जिनकों मिल गई है वे आनंद से हैं पर ऐसे खुशनसीब कम ही हैं, बहुत लम्बी कतार है नौकरी चाहने वालों की और एक कतार और भी है जो प्राईवेट कंपनियों में नौकरी कर अपने शोषण के बावजूद भी प्रसन्न हैं । अमावस का अंधियारा तो यूं भी वर्ष भर छाया रहता है उनके चेहरों पर जो दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते रहते हैं । सोना महंगा हो गया पर बिक्री कम कहां हुई, रसोई का सामान मंहगा हो गया पर बिक्री कम कहां हुई, दो पहिया वाहनों से लेकर चार पहिया वाहनों की दुकानों में कतारे लगी हैं पहिले से ही बुकिंग करना पड़ रही है, मोबाइल की इतनी सारी कंपनियां आ चुकी हैं कि कौन सा मोबाइल लें इस को सोचने के लिए भी गूल की मदद ली जा रही है ऐसा लगता है कि हम बहुत खुशियाल देश में रह रहे हैं । सच तो यह है ही कि हमारी दैनिक आय बढ़ चुकी है पर एक वर्ग विशेष अभी भी बहुत पीछे है । । जीएसटी के साथ भी और जीएसटी के बाद भी दुकानों के सामने लगी भीड़ कम होती दिखाई कहां दी । एक बड़ा समूह है जिसे ने तो जीएसटी के होने का नुकसान दिखाई दिया था और न कम होने का । एक दूसरा वर्ग भी है जो केवल दो जून की जुगाड़ में मारा-मारा फिरता रहता है । उसके लिए घर की सफाई सबसे कठिन होती है । पहले तो किलो भर चूना से पुत जाया करता था घर । माटी की दीवालें जगमगा उठती थी सफेद रंग में पर अब तो महंगे वाले पेन्ट चाहिए, डिस्टेम्पर चाहिए, वो भी पीछे नहीं रहना चाहता चकाचौंध वाल इस दुनिया में किसी से । सरकार ने उसका भार हल्का कर दिया है महिलाओं को हर महिने पैसे मिलने लगे हें और पुरूषों को राशन पर फिर भी आधुनिकता की दौड़ में वह पिछड़ ही जाता है । हिन्दु धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार होता है दीपावली इसलिए ही तो इसे धूमधाम और पटाखों की तेज आवाज के साथ मनाया जाता है ताकि चेहरों की उदासी गायब हो जाए । अमूमन सालभर बाहर रहने वाले लोग भी अपने घरों में आकर मनानते हैं य त्यौहार इसलिए रेलागाड़ियों में भीड़ भी बढ़ जाती है।
बहुत कुछ अमावस सा घटा है इस बार । बिहार चुनाव में किसके हिस्से में अमावस का अंधियारा आने वाला है और किसकी कुर्सी रोशनी से जगमग होने वाली है भविष्य के गर्त में है पर ताल दोनों ओर से ठोकी जाने लगी हैं । यही तो राजनीति है । पहले टिकिट पाने के लिए जुगाड़ बिठाओ फिर जीत जाने के लिए कसरत करो । अब तो गठबंधनों का दौर है तो पहले तो राजनीतिक दलों को गठबंधन में अधिक से अधिक सीटें मिल जाएं इसके प्रयास करने पड़ते हैं । हर एक दल चाहता है कि वो अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़े भले ही वहां उसका आधार हो या न हो वह इसके लिए दबाव बनाता है, यह दबाव अब कविता के माध्यम से प्रस्तुत होने लगा है, चलो अच्छा है नेता भी कविता पढ़ लेते हैं भले ही उदघृत करने के लिए पढ़ते हों, यह अच्छी बात है । तो पहले गठबंधन में दबाव बनाया लगा ऐसा कि यह दल बिल्ुकल आरपार की लड़ाई के मूड में है, पर जब बंटवारा हो गया तो जो मिला उसमें ही संतुष्ट होकर चेहरे पर दुख भरी मुसकान फैला दी । सीटें कितनी किस दल को मिलेगी यह तय हो गया फिर किसको को कहां से चुनाव लड़ना है यह तय किया जाता है फिर जीत जाने की जुगाड़ करनी पड़ती है । लम्बा सफर है जो पूर्णिमा से होता हुआ अमावस तक जाता है पर इसमें जो सफल हो गया फिर उसकी हर रात पूर्णिमा ही बन जाती है । सारी पार्टियां सिमट गई हैं बिहार में हर एक को अपने हिस्से का उजियारा चाहिए । पर आपका हिस्सा है भी ? यह तो जनता को ही तय करना है । लम्बे कुरते-और पायजामा अब बिहार के दूरदराज के इलाकों में सफेदी फैला रहे हैं और आम मतदाता एसआईआर के बाद हमारा नाम वोटर लिस्ट में है भी की नहीं की जुगाड़ में लगा हुआ है । उसे नहीं पता कि इतने सारे नाम जो बिहार की वोटर लिस्ट से काटे गए उनमें वो भी कट गया कि अभी बचा है । उसे मतदान करना है ताकि अपने प्रदेश का भविष्य तय कर सके पाचं सालों के लिए । उसे तो गर्व करना चाहिए कि वह तय करता है अपने प्रदेश का भविष्य पर वो तो ऐसी बातें सुनकर आश्चर्य में पड़ जाता है । दीवाली की चासनी भरी मिठाई सदृश्य लगती हैं उसे ऐसी बातें । बिहार में दीपावली का नहीं चुनाव का खुमार छा चुका है । पश्चिम बंगाल में एक छात्रा फिर दरिंदगी की शिकार हो गई । यूं तो लखनउ में भी एक छात्रा दरिंगदी की शिकार हुई पर हल्ला पश्चिम बंगाल का मचा । वहा भी चुनाव होना हैं । कलकत्ता की सड़कों पर विरोध के स्वर गूंजने लगे । महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं कम हो ही नहीं रहीं हैं । आम व्यक्ति दरिंदा बनता जा रहा है । हवस ने उसे बराबाद कर दिया है और वह एक पूरे परिवार को बरबाद कर रहा है । पूरे देश में आए दिन ऐसी घटनाएें हो रहीं हैं । उत्तर प्रदेश में मख्यमंत्री योगी जी ने जिस तरह से अपराधियों की लगाम को कसा है वह सीखने लायक है पर घटनाएं वहां भी थम कहां रहीं हैं यह अलग बात है कि जो ऐसी घटनाएं करता है बाद में वह अपने ही कान पकड़कर माफी मांगता दिखाई देता है । पर अच्छा तो तब हो जब ऐसी घटनाएं हों है नहीं । उत्तरप्रदेश बड़ा प्रदेश है तो वहां पूरी व्यवस्था को व्यवस्थित करना चुनौती है, योगी जी की पुलिस इसमें मेहनत कर रही है पर घटनाएं अभी थम नहीं रहीं हैं । अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने सात दिवसीय भारत का दौरा किया । यी आश्चर्यजनक इसलिए लगा कि भारत तालिबान के खिलाफ अपनी रणनीति के लिए पहचाना जाता रहा है । तालिबान को वह आपराधिक संगठन मान कर उससे दूरी बनाता रहा है पर यकायक उसकी इस रणनीति में बदलाव आ गया उसने अफगानिस्तान के विदेश मंत्री को पूरी तबज्जो दी और अफगानिस्तान मे अपना दूतावास फिर से प्रारंभ करने की घोषणा भी कर दी । भारत की विदेश नीति का यह कोई भाग होगा पर यह है तो आश्चर्यजनक । विपक्षी पार्टियां तो चिल्लायेगीं वे इससे ज्यादा और कर भी क्या सकती हैं पर होगा वहीं जो सोचा गया है या रणनीति का हिस्सा है । अमेरकी राष्टपति को बहुत चाहत थी कि उन्हें नोबल का शांति पुरूस्कार मिले, इसके लिए वे बहुत कुछ करते रहे जबरन युद्ध रूकवाने का नाटक भी किया और झूठ भी बोला, बेचारे पाकिस्तान से तो जबरन अपने नाम का प्रस्ताव भी नोबल पुरूस्कार देने वाली समिति तक पहुंचवा दिया, पर उस समिति ने वह ही किया जो उसको करना था वह तो ने तो टंप् से भयभीत हुआ और न ही प्रभावित । उसने उसको ही नोबल का शांति पुरूस्कार दिया जो इसका हकदार था । विश्व के कई देशों ने राहत की सांस ली वरना सभी को लग रहा था कि यह पुरूस्कार इन्हें मिल ही जाएगा ।
