दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।
कार्तिक माह में अहोई, प्रबोधिनी, अमावस्या एवं छठ का है विशेष महत्व
पंकज सीबी मिश्रा , राजनीतिक विशलेषक / पत्रकार जौनपुर यूपी
ध्वज, धनाढ्य, धर्म सम्मत और धार्मिक होना ही अंतिम लक्ष्य नहीं है सनातन का अपितु मानवता का पालन करना ही सनातन है और यही धर्म है l असल धर्म हमें सभी से प्रेम करना सिखाता है , यदि आप धार्मिक हैं तो आपके अंदर किसी के लिए नफ़रत और मातृभूमि के प्रति द्वेष का भाव आ ही नहीं सकता , धार्मिक होने का अर्थ किसी दूसरे धर्म से नफ़रत करना नहीं है । कट्टर हिंदू बनिए किन्तु कट्टर सनातनी के चरित्र में । धर्म विरोध एक राजनीतिक टर्म है , यदि बनना ही है तो ‘कट्टर धार्मिक’ बनिए , क्यूंकि धार्मिक होने का अर्थ धर्म का पालन करना है, जो की अत्यंत कठिन है । सर तन से जुदा कि सोच आपको हिंसक पशु , असुर और घृणित बना सकती है किन्तु धार्मिक नहीं । व्हाट्सएप पर स्टेटस लगाना , अपने बायो में ‘कट्टर हिंदू ,कट्टर सनातनी’ लिखना, दूसरे किसी धर्म के व्यक्ति से नफ़रत करना , यह सब बेहद आसान है किन्तु सनातन का पालन कठिन है । यह पवित्र माह कार्तिक हमें सनातन की ही महिमा बताता है । कार्तिक मास आरंभ हो चुका है , यह माह भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है , इस माह कि महीमा श्रीमद् भागवतम से लेकर वेदों, पुराणों में बेहद विस्तृत रूप से दी गई है। स्वयं भगवान इस माह की महिमा बतलाते हैं , कि वह उन्हें कितना प्रिय है। तुलसी विवाह, छठ पूजन , गोवर्धन पूजा से लेकर दीवाली जैसे विशेष पूजन का माह है कार्तिक जहां से खुशियों का आगमन माना जाता है और इसी माह में माता लक्ष्मी व देवी तुलसी के पूजन का विधान है । कार्तिक माह में घर की साफ सफाई के पश्चात दीपों से रौशन होता है । कार्तिक माह में दीवाली मनाई जाती है, जिसके लिए मान्यता है कि हमारे सनातन के सबसे बड़े आराध्य पुरुष विष्णु अवतारी प्रभु श्रीराम ने लीलाओं के चौदह वर्ष वनवास में बिताए । वहां धर्म की स्थापना की । कंद मूल फल और औषधियों के महत्व को बताया जिसके बाद अयोध्या लौटे तो हर घर को दीपों से सजाया गया था, और श्रीराम का स्वागत तमसो मा ज्योतर्गमय के मंत्र से किया गया था । उसी मान्यता को हजारों साल से मानते हुए इस साल दिवाली 20 अक्टूबर को मनेगी या 21 अक्टूबर को, इसको लेकर पंचांग की स्थिति स्पष्ट करता हूं , पिछले साल दो दिन दिवाली मनी थी, दरअसल पंचांग के कारण कार्तिक अमावस्या तिथि और प्रदोष काल इस साल 20 अक्टूबर को मिल रहा है, हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 20 अक्टूबर को शाम 03:44 से होगी और इसका समापन अगले दिन यानी 21 अक्टूबर को शाम 05:54 पर होगा, ऐसे में ऊहापोह यहीं से बन रहा है, उदया तिथि को मानने वाले 21 अक्टूबर को दीवाली की बात कह रहे हैं, कुछ पंचांगों में भी दिवाली की तिथि को लेकर भेद है, उनमें 21 अक्टूबर की दीवाली बताई गई है। कार्तिक मास की सबसे खास बात यह है की इस महीने की गई थोड़ी सी भी भक्ति का लाभ आपको लाखों करोड़ों गुना होकर मिलता है। कार्तिक माह में ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4 बजे) उठ भगवान विष्णु और मां तुलसी को दिया दिखाने का विशेष महत्व है। धार्मिक दृष्टि से आपको अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करना होगा , शास्त्रों का अध्यन करना होगा ,सेवा करनी होगी ,भौतिक शरीर से आगे जीवों में आत्मा व परमात्मा के अंश को देखना होगा और जब आप सभी में धर्म देखने लगेंगे तो अपने आप सभी से प्रेम होने लगेगा । यही तो है धर्म की विशेषता , बस समझने-समझने का फेर है , यह नफ़रत नहीं प्रेम सिखाता है।भगवान कृष्ण हम सभी को धर्म के मार्ग पर चलने की शक्ति दे, जिससे हमारे भीतर सभी के लिए करुणा जगे ।कोई भूखा न सोए , कोई बारिश , धूप में बिना छत न रहे , और सबसे महत्वपूर्ण कोई किसी से नफ़रत न करे ।
दीवाली 20 अक्टूबर को है और शाम 07:08 से रात 08:18 तक लक्ष्मी पूजन , प्रदोष काल – शाम 05:46 से रात 08:18 तक है, दीपावली के दिन महालक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करने का विशेष विधान है, कहते हैं शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी का पूजन करने से स्थायी लक्ष्मी का वास होता है। हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व होता है और कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं। ऐसी मान्यता है दीवाली के बाद देव दीपावली के दिन सभी देवता बनारस के घाटों पर आते हैं । कार्तिक पूर्णिमा के इस विशेष दिन पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था । त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर काशी में प्रस्थान कर खुशी मनाई थी तब से काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा सदियों सनातन काल से चली आ रही है। इस दिन दीपदान करने का विशेष महत्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने खुद देवताओं के साथ गंगा के घाट पर दिवाली मनाई थी, इसलिए देव दीपावली का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है। इसलिए काशी में दीपावली के 15 दिनों के बाद कार्तिक पूर्णिमा तिथि पर देव दीपावली का उत्सव बड़े धूमधाम से देवी-देवताओ का स्वर्ग से धरती पर उनके आगमन पर स्वागत करते है। काशीवासी इस पर्व में गंगा स्नान करने के बाद दीप जलाकर खूबसूरत रंगोली और लाखों दीये हर घाटों में जलाकर इस त्योहार को हर्षोल्लास के साथ मनाते है। दीपावली समाप्त हो जाने के बाद जले हुए दीपकों को गोवर्धन पूजा में इस्तेमाल कर सकते हैं, गोवर्धन पूजा दीवाली के अगले दिन होती है, गोवर्धन पूजा में इस्तेमाल के बाद नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए, दीवाली का अन्य सामान और दिए एक साथ प्रवाहित कर दें, साथ ही आप कुछ दिए घर के मंदिर में भी रख सकते हैं, ऐसा करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद सदैव आपके घर में बना रहता है। आप कुछ दीये अपने घर में, जैसे पूजा घर या तिजोरी में रख सकते हैं, इससे घर में सुख-समृद्धि आती है और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद सदैव आपके घर में बना रहता है। अगर आपके घर के आस-पास कोई नदी या तालाब नहीं है, तो इन दियों को घर में ऐसी जगह रखें, जहां कोई इन्हें न देख सके, इसे शुभ माना जाता है, जरूरतमंदों को दान करने से शुभ फल मिलते हैं, घर-परिवार में खुशियां बनी रहती हैं, इसके अलावा आप दियों को किसी पेड़-पौधे के नीचे मिट्टी में गाड़ सकते हैं, यह एक पर्यावरण के अनुकूल तरीका है। दीपो नाशयते ध्वांतं धनारोग्ये प्रयच्छति, कल्याणाय भवति एव दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते।। आप सभी को कार्तिक अमावस्या , दीपावली और देव दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
