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मनुवाद से मानवता तक : हमारे शौर्य पर किसका जोर..!

पंकज सीबी मिश्रा  / पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक जौनपुर यूपी

पहले परशुराम फिर संत तुलसीदास , महान चाणक्य , स्वतंत्रता के समय मंगल पांडेय , बलिदान के समय वीर चंद्रशेखर आजाद और अब राजनीति में कई ब्राह्मण जिन्होंने मनुवाद के अलख को शीर्ष तक पहुंचाया । सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ ऐसे कई विभूतियों ने सर्वजन हिताय की वो अलख जगाई जो मिशाल बनी और बदले में एजेंडेबाजों ने उन्हें निशाने पर लिया । वर्तमान दशक में वामपंथ और बौद्धिज्म के नाम पर अव्यवस्था और केवल ब्राह्मणों के लिए नफरत फैलाई गई । लोगो को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़काया गया और तो और समाज को जाति दुर्व्यवहार का डर दिखा  वर्ण व्यवस्था के खिलाफ खड़ा किया गया जिसकी परणिति है की बंगाल और कश्मीर में हिंदू मारे जा रहे है । पहलगाम में धर्म के नाम पर आतंक फैलाया गया । एक तरफ आरक्षण के विषैले दंश से अछूत रहकर ब्राह्मण बेटी शक्ति दुबे ने प्रशासनिक सेवा में टॉप कर यह बताया कि आज भी ब्राह्मण बौद्धिक श्रेष्ठता में अव्वल है तो दूसरी तरफ अजय मिश्र , महेंद्र नाथ पांडेय और निशिकांत दुबे सरीखे नेता जनहित में मनुवाद के लिए अब भी खड़े है  । निशिकांत बढ़िया वक्ता हैं , हमेशा तथ्यों पर बोलते हैं , बीजेपी के प्रखर नेता हैं । जो देश राहुल और अखिलेश की जातिवादी बातों बेसुरे विचारों को मजबूरी में सुनता है वह देश निशिकांत जैसे नेताओं की बारी की बेसब्री से प्रतीक्षा भी करता है । उधर ब्राह्मणों का अपमान कर खुद को जल्दी सफल बनाने की कवायद की फेहरिस्त लंबी है किंतु स्वामी प्रसाद , अनुराग कश्यप , स्टालिन जैसे लोग भूल गए की ब्राह्मण सर्वनाश भी करते है । मैंने सोशल मीडिया पर बाकायदा पोस्ट पढ़ी जिसमें नशेबाज अनुराग कश्यप ब्राह्मणों पर मूतने की इच्छा जता रहा जबकि उसकी मानसिकता केवल जल्दी से मेनस्ट्रीम मीडिया में आकर राजनीति पारी खेलने की है । फिल्म इंडस्ट्री में अनुराग एक जाना माना नाम है , उसने अनेक फिल्में बनाई हैं और खुद अभिनय भी किया पर रद्दी गई । दो दो बीवियां तलाक देकर जा चुकी हैं । अनेक बार बयानों से पिटते पिटते बचे हैं। अब जमकर ट्रोल हो रहा हैं तो घुटनें के बल ब्राह्मण समाज से माफी मांग रहा पर गाहे बगाहे उसकी नई सनक बाहर आ जाती है । उसने कहा कि देश के ब्राह्मणों पर मूतना है । अनुराग पर जगह जगह मुकदमें कायम हो गए ।इंडस्ट्री के अनेक ब्राह्मण कलाकारों ने फटकार लगाई तब जाकर आंखे खुली और थूक कर चाटना शुरू किया । ठीक कहा एक और सफल ब्राह्मण मनोज मुन्तिशर ने कि तेरे शरीर में इतना पानी नहीं है कि ढंग से वॉशरूम कर सके । देख बाहर निकल के हर समाज तुझ पर मूत रहा है। पता नहीं अपने आप को ब्राह्मण विरोध में खड़ा करने की लत इन टट्टुओं को क्यो पड़ गई ! उधर प्रखर और मुखर ब्राह्मण नेताओं को ठिकाने लगाने की आदत बीजेपी को भी पड़ गई है  ।  कांग्रेस तो मणिशंकर अय्यर और प्रमोद तिवारी को जमकर डिफेंड करती है जबकि आज की बीजेपी निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा  के बयानों से पार्टी को अलग करती दिख रही है कुछ  ऐसा ही बर्ताव नूपुर शर्मा के साथ किया गया । बीजेपी ने बड़ी बेशर्मी से उनसे ऐसा मुंह मोड़ा मानों उन्होंने राष्ट्रद्रोह कर दिया हो । आगे का भविष्य बीजेपी को पुनः ब्राह्मण और आरएसएस के शरण में ही सुरक्षित है ।

               कईं बार  विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका के रिश्तों पर  खुली बहस की आवश्यकता लम्बे समय से की जा रही है । संविधान की रक्षा और कोर्ट की गरिमा बनाए रखने का पहला सवाल 1975 में तब खड़ा हुआ था जब इलाहाबाद उच्चन्यालय के आदेश की धज्जियाँ उड़ाते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल देश पर थोपा था । तब विपरीत फैसला देने वाले न्यायाधीश , वादी राजनारायण और उनके वकील की क्या दुर्गत बनाई गई , वह एक इतिहास है । तब कांग्रेस पार्टी अपनी नेता के गलत काम के साथ खड़ी हुई , आज बीजेपी अपने निशिकांत और नूपुर शर्मा जैसे मुखर नेताओ के खिलाफ खड़ी है । तथापि इंदिरा ने जो किया वह भी गलत था और अब जेपी नड्डा ने जो किया वह भी गलत है । ऐसे तो बीजेपी अपना ही तमाशा बनाएगी । नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ जनता इसलिए खड़ी हुई कि उन्होंने पूर्व पीएम और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अनुसरण किया है । यूपी में बढ़ते ब्राह्मणों के साथ अत्याचार ने भी एक नया नेरेटिव गढ़ा है । सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सॉफ्ट राष्ट्रवाद से निकलकर बीजेपी हार्ड राष्ट्रवाद की तरफ बढ़ी उसी की देन है कि योगी आदित्यनाथ के जाति बिरादरी के कई ब्लैक कॉलर और अपराध जगत के नेता कॉलर टाईट करके यूपी में कुर्सी खींच आसीन है और न्याय व्यवस्था उनका कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा । प्रश्न भाजपा तय करे कि वह सॉफ्ट और हार्ड राजनीति से किसे चुनती है ? अन्यथा पहले नूपुर शर्मा और अब निशिकांत दुबे तथा दिनेश शर्मा के खिलाफ खड़ा होना भारी पड़ेगा ।  हिन्दुत्व , ब्राह्मण वोट और सत्ता को इकट्ठा चुनना बीजेपी की त्वरित जीत है । उसका भविष्य भी इन्हीं तीन पर टिका है , वरना सेक्युलर पार्टियों की तो पहले ही देश में भरमार है जो ब्राह्मण वोटरों के ताकत से परिचित है और भविष्य में इसी कौम के वोट के सहारे तख्ता पलट की कोशिश करेंगे ।

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