राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
सम्पूर्ण भारत जैसे प्रयागराज में सिमट गया हो……..12 वर्षों के बाद पड़ने वाला इस बार का महाकुम्भ प्रचार-प्रसार और व्यवस्थाओं के चलते आमजन का आकर्षण का केन्द्र बन चुका है। सनातन संस्कृति की विरासत के इस माहपर्व पर लोग या तो पहुंच चुके हैं या पहुंचने वाले हैं जो नहीं पहुंच पा रहे हैं वे भी इस की चर्चा में लगे हुए हैं । हम भले ही आधुनिकता के मायाजाल में अपनी संस्कृति को भूल रहे हों पर अब भी ऐसा बहुत कुछ हे जिसके प्रति हमारी आस्था, विश्वास और श्रद्धा अब भी केन्द्रित है । हम भारतीय उत्सव धर्मितजा के संवीक हैं और हमारी परंपराएं भी उत्सव धर्मिता पर केन्द्रित होती हैं । सामहितक पूजा-पाठ और मेला आदि हमारी इसी संस्कृति के रंग होते हैं जिसमें हम सारी प्रतिस्पर्धाएें त्याग कर भावों को अंगीकार करते हैं और चेहरे की प्रसन्नता के साथ उत्सव की पूर्णता को महसूस करते हैं । महाकुम्भ करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के मनोभावों का रेखाचित्र है जिसमें अमीर-गरीब, जातपता जैसे भावों को कोई स्थान नहीं हैं….गांगा, यमुना और सरस्वती का संगम ही तो प्रयागराज को तीर्थस्थल बनाता है, संगम के इस मेल पर मेला तो हर साल लगता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और हमारा पांचांग माघ माह को रेखांकित करता है तब भी हजारों श्रद्धालुहर वर्ष इस पावन भूमि पर कल्प प्रवास कर अपनी भौतिक यात्रा को आध्यात्मिक यात्रा में बदल लेने का प्रयास करते हैं पर जब कुम्भ का पर्व आता है तब इससे जुड़ने वालों की संख्या करोड़ों में हो जाती है, अमृत कलश छलका था, उसकी बूंदें समाहित हुई थी इस जल की असीम गहराईयों में । सागर का मंथन हुआ था तो सर्वप्रथम तो विष ही निकला था, सच ही तो है मंथन जब भी होता है पहले विष ही निकलता है फिर अमंत निकलता है, यह विष ही तो संदेश देता है कि विष निकल लो पहले बाहर फिर जो शेष रहेगा वह अमृत ही होगा । प्रयाराज के इस तीर्थ में छलके अमृत को पाना चाहते हैं हम, हमारे पाप-पुण्य की परिभाषाएं अलग हो सकती हैं पर अमृत पाने की आकांक्षा एक जैसी ही है, गंगा जी को तो वैसे भी मोक्षदायनी कहा जाता है, मोक्ष तब ही मिलता है जब विष समाप्त हो जाए और अमृत पाने की लालसा बझ़ जाए, यह लालसा ही तो खींचकर ले आती है कुम्भ के इस मेले में । महाकुम्भ हमारी सांस्कृतिक विरासत है त्रिवेणी के जल में डबकी लगा कर हम अपने जीवन के रहस्य को समझने का प्रयास कर लेते हैं, हम आध्यात्मिक होकर अपने ही अंदर झांक लेने का श्रम करते हैं, हम महसूस करने लगते हैं कि तन और चेतना का स्वरूप् अलग-अलग है, हम आभासित हाने लगते हैं कि हमारा ज्ञान और हमारा अज्ञान हमें भौतिक रूप् से भले ही परिपक्व बना रहा हो पर हमारे अंदर की शून्यता हमें उस मुकाम तक नहीं जा पने दे रही है जिसे हम चेतना जागरण के माध्यम से जानते हैं, यह चेतना जागरण ही तो आध्यात्म है । प्रयागराज सज चुका है, साधु संत आ चुके हैं, शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, सहित हमारी आध्यत्म उर्जा के केन्द्र माने जाने वाल तपस्वी, ज्ञानी, महाज्ञानी सभी आ चुके हैं, उनकी उपस्थिति इस पावन क्षेत्र की आध्यात्म उर्जा में वृद्धि कर रही है, वहीं विदेशी धरती से भी जिज्ञासु और आध्यात्म में रूचि रखने वाले पर्यटक भी प्रयागराज अ चुके हैं । विश्व के विभिन्न देशों से आने वाले ये जिज्ञासु ही भारत को विश्वगुरू के रूप् में पहुंचाने में सहयोगी हो रहे हैं । भारत की आश्ध्यात्म उर्जा जिसे स्वामी विवेकानंद जी ने ऊंचाई दीं आज इस महाकुंम्भ के आयोजन के बाद और ऊंचाईयों पर पहुंचेगीं ऐसी उम्मीद हम सभी कर रहे हैं । वैसे भी विदेशी लोग तो हमारी जाग्रत चेतना के संवाहक रहे ही हैं । प्रयागराज में यवस्थायें चाकचौबंद हें और आधुनिकता से लबरेज भी हैं । कुम्भ के प्रारंभ दिवस में ही करीब एक करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम तीर्थ पहुंचकर पवित्र संगम में डुबकी लगाइ्र हैं जो अपने आप में एक रिकार्ड है । कोई गहरे पानी में डूबे नहीं, कोई अपनो से बिछुड़े नहीं और कोई भूखा न रहे कोई आवास से वंचित न रहे इन सभी बातों का बहुत ही बारकी से ध्यान रखा गया है । एक महिने तक चलने वाले इस पर्व को इस बार बहुत ही महिमामंडित किया गया है जिसकी झलक वहां दिखाई भी दे रही है । झलक तो अब दिल्ली में भी राजनीति की दिखाई देने लगी है । उसे देखकर लगने लगा है कि राजनीति अब उतनी सहज और सरल नहीं रह गई है जिस राजनीति के बारे हम जानते और समझते रहे हैं । राजनीति में सिद्धांत और नैतिकता जैसे शब्दों का लोप कर दिया गया है । राजनीति अब केवल सत्ता सुख पाने और अपने अहम् की संतुष्टि का साधन मात्र रह गई है । वोट कैसे भी चाहिए……भले ही सब्ज बाग दिखाओ या लालापाप…..वायदे रंगरिंगे आवरण में सजा कर प्रस्तुत कर दिए जाते हैं और वोट पा लेने की कल्पना कर ली जाती है । सभी को सब कुछ फिरी में देना अब चुनावी घोषणापत्र बन गया है । पहले सर्व विकास और क्षेत्र विकास के मुद्दों पर चुनावी घोषणपत्र प्रस्तुत किया जाता था पर अब व्यक्ति विशेष वर्ग विशेष को फिरी में देने का संकल्प पत्र प्रस्तुत किया जाता है….इसका परिणाम यह होता है कि बजट की लगभग सारी राशि इन योजनाओं के क्रियान्वयन पर ही खचग् हो जाती है फिर शेष विकास कार्य के लिए कुछ बचता ही नहीं है…..यह जो शेष कार्य है न वह ही सर्व विकास की परिभाषा के अंतर्गत आता है जो शनै-शनैः राजनीति के शब्दकोश से गायब होता जा रहा है । दिल्ली की राजनीति इस कारण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह भारत की राजनीति का भी केन्द्र है । केन्द्र पर सत्ता में भाजपा है पर विगत 20-25 वर्षों से उसके पास वहां की सत्ता नहीं है, पहले कांग्रेस ने पन्द्र वर्षों तक वहां शासन किया और फिर आप पार्टी ने 10-11 वर्षों से सत्ता पर कब्जा जमा लिया । भाजपा दिल्ली में सत्ता पर काबिज होने के लिए छटपटा रही है, उसकी छटपटाहट साफ दिखाई भी दे रही है । इस बार का चुनाव भाजपा करो या मरो की स्थिति में लड़ रही है, राजनीति के सारे दांव पेंच वह आजमा रही है । वैसे तो भजपा वहां उपराज्यपाल को असीम शक्तियां देकर वहां की राजनीति में अपना हस्तक्षेप करती रही है पर इस बार उसे अपना मुख्यमंत्री चाहिए, मुख्यमंत्री कौन होगा यह तय नहीं है, पर जो उम्मीदवार भाजपा ने मैदान में उतारे हैं उनमें से अधिकांश नेता मुख्यमंत्री बनने की योग्यता को रखते हैं, वैसे भी भाजपा अंजाने चेहरे को इस पद आसीन करने का प्रयोग राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश तक में कर चुकी है और उसे लगता है कि यह प्रयोग सफल भी हो रहा हैयह अलग बात है कि उन प्रदेशों की जनता को यह लगता है कि नहीं यह जानने की कोशिश कभी नहीं की गई । सत्ता की कर्सी केवल सत सुख भोग लेने के लिए नहीं होती, सत्ता आम जनता के सर्व विकास की भावना के साथ की जाती है पर अब जब सर्व विकास की परिभाषा का ही रूपांतरण कर दिया गया है तो फिर ऐसे आदर्श वाक्यों का कोई मबलब नहीं रह गया है । दिल्ली में भाजपा यदि सत्ता में आई तो कौन मुख्यमंत्री होगा यह राजनीति में चिन्तन का विषय नहीं है चिन्तन का विषय है सत्ता मं आना जिसके लिए शतरंज बिछ गई है और भाजपा एक के बाद एक अपने मुहरे चल रही है । कांग्रस दिल्ली में अपनी जमीन तलाश रही है, दिल्ली में वह अपन सबसे कम स्केर प्रतिशत पर आ चुकी है, उसे एक बार फिर अपनी जमीन को मजबूत करना है तो वह भी सिद्दत के साथ चुनाव लड़ती दिखाई दे रही थी पर यकायक इस पर विराम लग गया अब लगने लगा कि कांग्रेस भी केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करा लेना चाहती है । आप पार्टी के सामने बहुत सारी चुनौतियां हैं, आप पार्टी के पास बड़े नेताओं का अभाव ह, अरविन्द केजरीवाल ने अपने से दो से लेकर पांच नम्बर तक किसी को आने ही नहीं दिया है अब इनके बाद जिनका नम्बर आता है नके सहारे वह चुनावी मैदान में है जिसे भाजपा चक्रव्यूह में फंसा चुकी है । इस चक्रव्यूह की रचना भाजपा ने विगत पांच वर्षों के असीम प्रयासों से की है, शराब घोटाले से लेकर बहुत सारे घोटालों के चक्र रचे गए और एक-एक कर आप पार्टी के नेताओं को इनमें फंसाया गया, खुद अरविन्द केजरीवाल को कोई मंत्रालय उनके पास न होने पर भी जेल भेज दिया गया और अभी वे जमानत पर हैं । जाहिर है कि इससे प्रदेश सरकार का कामकाज तो प्रभावित हुआ ही साथ ही आप पार्टी की जो इमानदारी वाली छवि थी उसको भी नुकसान हुआ । आज आम मतदाता काम न होने का आरोप तो लगा ही रहे हैं साथ ही साथ उनकी ईमानदारी पर भी शक कर रहे हैं । इस कारण से दिल्ली के इस बार के चुनाव में आप पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है । भाजपा के द्वारा रोज जारी किए जा रहे पोस्टरों में बिभिन्न् घोटालों के आरोप लगाए जा रहे हैं जो सच और झूठ की परिधि से बाहर निकल केवल मतदाताओं की मानसिकता को परिवर्तित कर देने में सफल भी हो रहे हैं । बहुत कठिन समय है आप पार्टी के लिए और भाजपा तो पूरी तह आशान्वित है कि इस बार दिल्ली की कुर्सी उन्हें ही मिलने वाली है । एक झलक अब संबलपुर की भी सामनू आती जा रही है वहां पत्थबाजी के बाद सूरतेहाल बदल चुके हैं अब वहां जो कुछ हो रहा है वह संबल के विकास के नाम पर हो रहा है और संभल को कल्कि अवतार की भविष्यवाणी के अनुरूप् तैयार किया जाने लगा है । संभवतः पत्थरबाजी की घटना के बाद संभल के विकास की नींव प्रारंभ हुई है वहां मंदिर भी मिले और बाबडी भी मिली और शास्त्रों में वर्णित 19 कूपों को भी खोजा जा रहा है । पुलिस चौकी भी बनाई जा रही है और रास्ता का चौड़ीकरण का कार्य भी चल रहा है अब इन कार्यों के बीच में जो कुछ आ रहा है उसके लिए बहुचर्चित बुलडोजर तो है ही, याने बुलडोजर को काम मिल चुका है और संभल की सूरत बदलती जा रही है । पुराने मंदिर मिलने से वहां धार्मिक अनुष्ठान भी होने लगे हें और कभी वहां के निवासी रहे हिन्दुओं के मन में अपनी जनमभूमि के प्रति फिर से ललक दिखाई देने लगी है । संभल लगातार प्रशासन की निगरानी में है । बताया जाता है कि वर्षां पहले वहां हिन्दु-मुस्लिम दंगा हुए थे, उस समय हिन्दु वहां अल्पसंख्यक थे तो वे मारे भी गए थे और जो बच गए थे वे वहां पलायन कर गए थे । मु,मंत्री योगी जी ने अब उन दंगों की जाचं के आदेश दिए हें और उस समय की गई जां की विवेचना करने को कहा है । निश्चित ही है उन लोगों के लिए कष्टदायक है जो उस समय दंगा करने के बाद भी अवपराधी घोषित होने से बच गए थे । पत्थबाजी करने वाले तो अभी भी पकड़ा ही रहे हैं अब लगता है कि वर्षों पहले दंगा करने वाले भी पकड़ायेगें । यह उन हिन्दुओं के लिए श्रृद्धाजंलि भी होगी जिनको इन दंगों में मार दिया गया था । एक-एक कर पीड़ित लोग सामने भी आ रहे हैं और अपनी दुख भरी दास्ता सुना रहे हैं अब उनको न्याय मिलने की उम्मीद है । नये साल के प्रथम माह में ही कुम्भ से लेकर दिल्ली तक और संभल होते हुए उम्मीदों की नई गठरी बांध ली गई है ।