संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने हाल ही में पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों की निगरानी करने वाली समिति का उपाध्यक्ष बनाया गया है। यह ठीक वैसे ही है जैसे- बिल्ली को ही दूध की रखवाली की जिम्मेदारी दे दी जाए। पिछले दिनों पहलगाम के आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका क्रिस्टल क्लियर थी। वे संदिग्ध गतिविधियों में पूर्ण रूप से सम्मिलित थे। और ऑपरेशन सिंदूर में वह और भी स्पष्ट हो गई थी, जब पाकिस्तान ने आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के खिलाफ भारत के साथ जंग छेड़ दी थी।
अब, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने तय किया है कि पाकिस्तान तालिबान प्रतिबंध समिति से जुड़ी बैठकों की अध्यक्षता करेगा और वो सिफारिशें तैयार करेगा और सदस्यों के बीच सहमति बनाने में मदद करेगा। इसके अलावा पाकिस्तान को आतंकवाद रोधी समिति (UNCTC) (1373 काउंटर टेररिज्म कमेटी) का उपाध्यक्ष भी बनाया गया है। 2025 में अल्जीरिया को आतंकवाद रोधी समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। फ्रांस और रूस को पाकिस्तान के साथ कमेटी का उपाध्यक्ष बनाया गया है। आतंकवाद रोधी समिति के पास खुद से सजा देने या कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है, लेकिन यह सदस्य देशों की गतिविधियों की निगरानी करती है और उन्हें सुझाव देती है कि वे आतंकवाद के खिलाफ क्या कदम उठाएं। यह समिति दुनियाभर के देशों को आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट करने का काम करती है। रिजॉल्यूशन 1373 के तहत साल 2001 में इसका गठन किया गया था। और इसका मकसद आतंकियों को धन मुहैया कराने से रोकना, आतंकियों को सुरक्षित पनाहगाह देने से रोकना, देशों को कानून और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने में मदद करना और आतंकवाद के खिलाफ जानकारी और सहयोग साझा करना है।
तालिबान प्रतिबंध कमेटी की स्थापना-1999 में हुई थी। तालिबान प्रतिबंध समिति (UNSC 1988 कमेटी) अफगानिस्तान में शांति कायम करने के लिए बनाई गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक स्पेशल कमेटी है। इसका उद्देश्य तालिबान और उससे जुड़े आतंकियों के खिलाफ कदम उठाना है। इस समिति को अधिकार प्राप्त हैं कि वे आतंकी और उनके संगठनों की संपत्ति और बैंक खाते फ्रीज कर सकता है। आतंकी सूची में शामिल शख्स की यात्रा पर प्रतिबंध लगा सकता है। आतंकी संगठनों या लोगों को हथियार बेचने या देने पर रोक लगाना इस प्रमुख कार्य हैं।
इन सब के बाद सवाल उठता है कि क्या अपनी संदिग्ध भूमिका के साथ पाकिस्तान अपनी कुर्सी के साथ न्याय कर पायेगा? इस खास पद को पाने अथवा दिलाने में पड़ोसी मुल्क चीन कि भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता और अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका का भी वरदहस्त उनके ऊपर दिखाई दे रहा है। इन सब स्थितियों के चलते भारत को फूंक-फूंक कर कदम उठाने की आवश्यकता है और सीमाओं की चौकसी बढाने की भी जरूरत है। क्योंकि आखिर में फिर वही बात आती है कि बिल्ली को ही दूध की रखवाली की जिम्मेदारी दी गई है। वैश्विक समुदाय को इसके बारे में ठीक से विचार करना चाहिए था।
– *डॉ. मनोज कुमार*
लेखक – जिला सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी हैं।