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वीआईपी कल्चर

बेटी के स्कूल का एनुअल फंक्शन था। रितिका जाना भी नहीं चाह रही थी लेकिन बेटी को प्राइस मिलना था इसलिए उसे जाना पड़ा। 6:00 से फंक्शन स्टार्ट था शाम को। इसलिए समय से ही चली गई। ऑडिटोरियम में चार लाइन कुर्सियों की वीआईपी के लिए रिजर्व कर रखी थी जिन पर सफेद कवर भी चढ़े हुए थे। रितिका स्कूल समय से चली गई इसलिए उसको वीआईपी के जस्ट बाद सीट मिल गई। कार्यक्रम सुचारु रूप से चल रहा था। 9:00 तक हॉल खचाखच भर गया बल्कि पीछे बहुत सारे पेरेंट्स खड़े हुए भी थे। वीआईपी सीट खाली पड़ी थी। कार्यक्रम समाप्ति की ओर भी था। फिर पीछे से कुछ पेरेंट्स हंगामा करते हुए आगे आए कि हम लोग खड़े हैं और यह सीट खाली पड़ी हैं। लेकिन स्कूल प्रशासन ने कहा कि हम आपको यह सीट नहीं दे सकते अगर कोई भी वीआईपी आ गया तो हम उसे कहां बिठाएंगे। पेरेंट्स ज्यादा हंगामा करने लगे तो फिर वह सीट उनको दे दी गई। रितिका का मन इन बातों को देखकर बहुत खिन्न हो रहा था। जो लोग उपस्थित भी नहीं है उनके लिए सीट रिजर्व हैं और आम आदमी जो पैसे भी खर्च करता है अपने बच्चों की पढ़ाई पर अपने जीवन की सारी जमा पूंजी लगाता है, उनके लिए व्यवस्था भी नहीं है। आखिर यह वीआईपी कल्चर कब तक चलेगा। जहां देखो वही वीआईपी कल्चर। रितिका की बेटी को प्राइस मिल गया और वह उसे लेकर हाल से बाहर निकल आई। बाहर खाने की भी व्यवस्था थी, लेकिन उसका मन ही नहीं किया क्या पता यहां भी भेदभाव हो।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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