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रक्तदान शिविर

रक्तदान शिविर लगाने की तैयारी चल रही थी। छुट भैया नेता जोर शोर से प्रचार प्रसार कर रहे थे। सभी से अपील की जा रही थी कि ज्यादा से ज्यादा लोग रक्तदान करें जिससे अधिक से अधिक लोगों का जीवन बच सके। स्कूल के बच्चे पोस्टर बनाकर रैली निकालने की तैयारी कर रहे थे। नेताजी का इंतजार किया जा रहा था रिबिन काटने के लिए। गाड़ी से नेताजी उतरे। रिबन काटा और मंच पर खड़े होकर भाषण दिया और ए०सी० गाड़ी में बैठकर जल्दी से निकल गए क्योंकि गर्मी बहुत पड़ रही थी।

अगले दिन रक्तदान शिविर लगा। सभी लोग सेवा भावना से रक्तदान कर रहे थे। शिविर सुचारू रूप से चल रहा था। कैमरामैन मुस्तैद था, पूरा कार्यक्रम कैच करने के लिए। किसी की भी भलाई छूट न जाए कैमरे में आने से।

कार्यकर्ताओं को विश्वास था की नेताजी भी आएंगे रक्तदान के लिए। लेकिन बढ़ते हुए बीपी और शुगर को देखते हुए उनका आने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया था।

नेताजी का लड़का अभी-अभी जवान हुआ था। वह भी जोश में था रक्तदान करने के लिए। जल्दी से तैयार हो गया शिविर जाने के लिए। नेताजी ने उससे पूछा, ” कहां जा रहे हो बेटा?

पुत्र ने कहा, ” रक्तदान करने के लिए।”

नेताजी उसे चिल्लाते हुए बोले,”हम लोगों के लिए थोड़ी है शिविर। हमारा खून बहुत कीमती है। हम लोग तो केवल फीते काटने और भाषण देने के लिए हैं। खून निकलवाना हमारा काम नहीं है। जा अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जा। खून तो कार्यकर्ता और अन्य लोग ही दान कर देंगे। हमारा तो केवल फोटो आएगा अखबार में रिबन काटते का।”

नेताजी की बात सुनकर उनका बेटा आश्चर्यचकित रह गया। क्या कथनी और करनी में इतना फर्क होता है। क्या नेताओं का काम सिर्फ वाहवाही लूटना ही है।

इतने में ही नेताजी चाय और पकौड़े का नाश्ता करने अंदर चले गए।

प्राची अग्रवाल

खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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