महिलाओं की किट्टी पार्टी एक रेस्टोरेंट में चल रही थी। सभी महिलाएं घर से अच्छी तरह से तैयार होकर पार्टी करने के मूड से बैठी हुई थी। ठहाके लग रहे थे। सभी आपस में मित्र थी।
मासिक पैसे देने का काम चल रहा था। एक महिला जो अपने को ज्यादा स्मार्ट बनती है सभी के पैसों का कलेक्शन कर रही थी। पर गड़बड़ किसी से भी हो जाती है। सभी महिलाओं के पैसे आने के पश्चात एक पेमेंट कम रह जाती हैं। थोड़ी देर में ही महिलाओं में आपस में छींटाकशी और आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है। जो महिलाएं थोड़ी देर पहले मित्र थी अब एक दूसरे के ऊपर इल्जाम लगा रही थी। सभी अपने को सच्चा साबित करने की कोशिश कर रही थी। अपनी औकात बता बता कर एक दूसरे को नीचा भी दिखाया जा रहा था।
जिस महिला पर संदेह हो रहा था वही सबसे ज्यादा दूसरों का गला पड़कर अपने आप को सच्चा साबित करने की कोशिश कर रही थी।
किट्टी का उस दिन का कार्यक्रम रंग में भंग के चलते खराब हो जाता है। हुआ सो हुआ लेकिन कई चेहरों की हकीकत सामने जरूर आ गई।
अपने ऊपर बात आती है तो सभी को बुरा लगता है। दूसरों पर इल्जाम लगाने में सभी को मज़ा आता है।
हम बाहरी रिश्तो के लिए अपनों से दूर होते हैं जबकि यह दिखावे के रिश्ते केवल आपकी औकात से बने हुए होते हैं।
गिरगिट की तरह रंग बदलते चेहरों को देखा है मैंने।
आंख दबाकर फितरत बदलते चेहरों को देखा है मैंने।
परिस्थितियों विपरीत क्या हुई जरा सी किसी की,
कितने की शरीफ चेहरों से नकाब उतरते देखा है मैंने।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश