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अनुत्तरित प्रश्न

आज भारत ही नहीं पूरा विश्व ही इस कोरोना के चपेट  में आया  हुआ है। कितने घरों से तो पूरा परिवार  ही साफ हो गया । कितने लोग ऐसे भी हैं

जो मंहगी दवाइयाँ खरीदते खरीदते बर्बाद हो गये, किसी के जेवर बिके तो किसी के मकान और दुकान तक बिक गये वह भी कौड़ियों के मोल।

कोई अपने किसी को बचाकर सन्तुष्ट हो रहा है तो कोई  मकान दुकान व जेवर बेचकर भी अपने को नहीं बचा पा रहा है। आज के इस विषम और विषैले परिस्थिति का जिम्मेदार कौन है? यहाँ इस परिस्थिति का दोषी भगवान और प्रकृति तो बिल्कुल नहीं हैं। फिर कौन?

    बहुत सारे लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा है की यह चीन के लैब में ही निर्मित एक जैविक हथियार है जो की वुहान के एक लैब से लीक हुआ था। चीन ने अपने ही देश के सबसे गरीब प्रान्त वुहान का सफाया किया वह भी जान -बूझकर। चीन  के व्यवसायिक प्रान्तों में इस जैविक हथियार का असर क्यों नहीं हुआ? यह स्वयं में ही एक बड़ा प्रश्न है।

             चीन  को अपने देश के उत्पाद बेचकर  बड़ी धन राशि एकत्र करनी थी साथ ही साथ दूसरे देशों को वह आर्थिक रूप से कमजोर भी बनाना था। उसे विश्व पटल पर प्रथम स्थान  लेने की ललक थी । वह अपनी चाल में काफी हद तक सफल भी रहा है । बहुत से देश इस कोरोना के कारण अपने लाखों लोगों को खो चुके हैं साथ ही साथ आर्थिक रूप से भी पस्त पड़ गये हैं।

    भारत भी ऐसे ही देशों में है जिसे जन और धन दोनों का नुकसान उठाना पड़ रहा है। कोरोना की दूसरी लहर से पहले हमारी सरकार मुख्य रूप से कोरोना से लड़ने के उपाय खोजने के बजाय शराब की दुकानों को खोलने में अधिक रूचि ले रही थी क्योंकि उसे वहाँ से मोटी आय होने वाली थी। भीड़ तो वहाँ भी खूब होती रही मगर सरकार की आय का सवाल था सो उनपर नियंत्रण करने वाली पुलिस भी उन्हें ढील ही दे रही थी। इसी तरह अन्य जगहों पर भी खुली ढील दी गयी और जब बीमारी नियंत्रण से बाहर होने लगी तब कहीं जाकर उनकी आँखे खुलीं।

                 आज कहीं ऑक्सीजन की कमी के कारण लोग मर रहे हैं तो कहीं दवाइयों की कमी के कारण वह भी देश की राजधानी दिल्ली में

जयपुरिया गोल्डेन जैसे बड़े बड़े अस्पतालों में। बाकी छोटे मोटे शहरों और छोटे अस्पतालों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। कहीं दवा

नहीं कहीं बेड नहीं और किसी तरह जिनको बेड भी मिल गया तो प्राणवायु ऑक्सीजन ही खत्म। और इसमें भी अमरता लिखवा कर लाये लोग

चोरबाजारी पर उतर आये हैं।कोई दवा छिपाकर ब्लैक में बेच रहा है तो कोई ऑक्सीजन सिलिंडर ही छिपाकर कालाबाजारी कर रहा है। दानवी प्रवृत्ति के लोग श्मशान तक को नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे लोगों को जरा भी शर्म क्यों नहीं आती है?      जिनके पास दवा और ऑक्सीजन खरीदने के लिए लाखों रुपए हैं वे तो अपने लोगों को कुछ हद तक बचा ले जायेंगे। लेकिन जिनके पास कुछ भी नहीं है ऐसे लोग कहाँ जायें ? आज के इस महामारी के समय में एक बेड के लिए लोग मंत्री संत्री तक सोर्स लगा रहे हैं , जिनको जानने वाला कोई भी नहीं उनके ऊपर क्या गुजर रही होगी?

यह एक बहुत बड़ा और ज्वलंत प्रश्न है।

      इसी प्रकार के बहुत से सवाल हैं जिनके कोई उत्तर नहीं मिल पाते हैं।

डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”

 दिल्ली

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