लक्ष्मी कानोडिया
सूरज तप रहा था, स्कूल की घंटियाँ शांत हो चुकी थीं, और बच्चों की गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं। पर इस बार, राघव, सिया, कबीर, और जोया ने तय किया कि वे अपनी छुट्टियाँ केवल खेल-कूद और मस्ती में नहीं बिताएँगे, बल्कि कुछ ऐसा करेंगे जिससे समाज को भी फायदा हो।
एक दिन, पार्क में बैठकर वे चर्चा कर रहे थे कि इस बार की छुट्टियों में क्या नया किया जाए। तभी सिया ने कहा, “क्यों न हम किसी अच्छे काम में समय लगाएँ?”
कबीर ने उत्सुकता से पूछा, “जैसे क्या?”
जोया बोली, “हम गरीब बच्चों को पढ़ा सकते हैं या कोई सफाई अभियान चला सकते हैं!”
राघव को एक और शानदार आइडिया आया, “क्यों न हम लाइब्रेरी खोलें?”
सबको यह विचार बहुत पसंद आया। उन्होंने अपनी पुरानी किताबें इकट्ठी कीं, आस-पड़ोस से भी किताबें मांगीं, और मोहल्ले के एक खाली कमरे में एक छोटी सी लाइब्रेरी बना दी। उन्होंने वहां बच्चों के लिए कहानियाँ पढ़ने का समय तय किया, जहां वे छोटे बच्चों को रोज़ नई-नई कहानियाँ सुनाते और उन्हें पढ़ना सिखाते।
धीरे-धीरे, इस छोटे से प्रयास की चर्चा पूरे मोहल्ले में फैल गई। बड़े लोग भी इसमें योगदान देने लगे। कुछ ने नई किताबें दान दीं, तो कुछ ने बच्चों को पढ़ाने में मदद की। जल्द ही, यह लाइब्रेरी केवल पढ़ने की जगह नहीं, बल्कि बच्चों के सीखने और सोचने की जगह बन गई।
गर्मी की छुट्टियों के अंत में, जब स्कूल दोबारा खुले, तो ये चारों बच्चे न केवल खुद को बेहतर महसूस कर रहे थे, बल्कि उन्होंने समाज में बदलाव लाने की एक नई पहल कर दी थी। उनके इस छोटे से प्रयास ने सबको यह सिखाया कि गर्मी की छुट्टियाँ सिर्फ खेलने के लिए नहीं, बल्कि कुछ अच्छा और नया करने का भी मौका होती हैं।
छुट्टियाँ केवल आराम और मौज-मस्ती के लिए नहीं होतीं, बल्कि इस दौरान हम समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकते हैं। छोटे-छोटे प्रयास भी बड़े बदलाव ला सकते हैं!
लक्ष्मी कानोडिया
अनुपम एंक्लेव किशन घाट रोड
खुर्जा 203131(बुलंदशहर),
उत्तर प्रदेश