![मत बहाओ खून](https://utkarshmail.com/wp-content/uploads/2023/11/Dr.-Rahul.jpg)
मत बहाओ खून
मत बहाओ खून मनुता का, अये सभ्य मानवो! रो- रोकर है पूछती तुमसे मनुजता आज है। तुम थे बहुविकसित, बुद्धि – विवेकयुक्त भलेमानस कहां पायी ऐसी पशुता, कैसा यह समाज है? धांय-धांय, सांय-सांय करते गिर रहे बारूद- गोले टूट- टूटकर के ढह रही हैं बहुमंजिली इमारतें बन गए वीरान शहर जो कलतक थे आबाद नहीं…