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व्यंग्य – जब  रावण ने लंका में कराई जाति जनगणना..!

रावण खुद को आठवीं पास त्रिलोक विजेता कहता था, और अचानक उसे जरुरी काम से किस्किंधा निकलना पड़ा तो रास्ते में उसे युवराज ने बताया की तुम्हे कुछ दिनों के लिए वहां का उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया जा रहा। रावण चौक गया और पूछा युवराज मै दशानन किंग हूँ फिर ये नाइंसाफी क्यों तो युवराज ने कहा गठबंधन में कई पीएम मटेरियल है, लास्ट ने एक हीं पीएम बनना है इसलिए आपका यहां का उप मुख्यमंत्री बन कर यहाँ जाति जाति जनगणना करवाना होगा। इसे हीं मुद्दा बनाकर हम आगे तक लड़ेंगे और अयोध्या जीत लेंगे। रावण भौचक क्यूंकि वह तो खुद को तीनों लोकों का स्वामी समझता था। उसका कहना था कि तीनों लोक में ऐसा कोई नहीं है जो उसका सामना कर सके। जबकि, हकीकत ये है कि रावण महज लंका जैसे छोटे प्रदेश का राजा था जहां चारे घोटाले के पैसे से राक्षसो को पेमेंट किया जाता था। वो राज्य भी उसने खुद के शौर्य से खड़ा नहीं किया था बल्कि भगवान से भिक्षा में माँग कर लिया था और आज वह कुछ डिलीट नेताओं के चक्कर में पड़कर छब्बीस कसम खाकर भगवान का हीं विरोध करने लगा। जबकि त्रिलोक विजेता तो इतना था कि  उससे महज कुछ दूरी पर ही किष्किंधा नरेश बाली ने कुपित होकर उसे अपने कांख में दबा कर छः महीने पर रखा था जिसके छत्र छाया में वह आज उप मुख्यमंत्री बनने जा रहा था। खैर उसे वैसे भी बिहार के सहस्रबाहु ने  पटक पटक कर धोया था। और, महज एक हजार किलोमीटर दूर स्थित अयोध्या और मिथिला आदि में तो लोग उसका नाम तक नहीं जानते थे क्योंकि वहां पलटूराम काफ़ी बदनाम था ! यूपी के स्वर्ग में योगेंद्र का शासन था एवं केन्द्रातल में स्वयं नमो राज करते थे। फिर कौन से तीनों लोक का विजेता और राजा था रावण  ?

             असल में आधुनिक रामायण का यह राक्षस रावण था तो मच्छर लेकिन, स्वघोषित रूप से वो त्रिलोक विजेता और बहुत बलशाली था ठीक रावण जैसी ही हालात इन गठबंधन के डिलीट नेताओं के गुणा गणित की वजह से है। इनका मानना है कि पूरी दुनिया में इनके समर्थक 56-57 देश हैं और पूरी दुनिया इनके नीली किताब से डरती है। क्योंकि, ये बहुत लड़ाकू हैं और बहुत बड़े भिखारी हैं। लेकिन, कौन से 56-57 देश हैं बे? इजिप्ट, सोमालिया, इंडोनेशिया, मलेशिया और हमास टाइप के भूखे नंगे 56 देश ? ये सच्चाई जानकर आपकी हँसी नहीं रुकेगी कि इनके उन 56 देशों में ये पिद्दी पिग्गिस्तान सबसे अधिक पावरफुल देश है। इसी से आप समझ सकते हैं कि जब उनके सबसे शक्तिशाली देश की ऐसी हालत है कि कटोरा लेकर भीख मांगता रहता है तो बाकियों की स्थिति क्या होगी।अरब-फरब पेट्रोल बेचकर थोड़ा बहुत कमा खा रहे हैं लेकिन जिस रफ्तार से इलेक्ट्रिकल गाड़ियों का चलन बढ़ रहा है उससे आने वाले 20 साल में वो अरब-फरब भी कटोरा लेकर पिग्गिस्तान के पीछे लाइन में खड़े नजर आएँगे। और नमो की सेना  तो उन्हें घर में घुस के मारते ही हैं। हमारे त्रिपुरा और मणिपुर जितना छोटा देश इजराइल भी अकेले ही इनके 5-6 कटेशर देशों को अभी 20-25 दिनों से बाँस किये हुए है और किसी के मुँह से बोल नहीं फूट रहे हैं।अमेरिका वगैरह तो शुरू से ही इन्हें भूखा भीखमंगा कहके तलाशी लेता है। और प्रतिभाए तो इनसे लात मार के ही बात करता है।  जापान जैसा छोटा देश तो इन्हें नागरिकता देता ही नहीं है। जबकि, मियाँमार (म्यंमार) ने तो इन्हें ऐसा कूटा कि इन्हें जान बचाकर भागने में ही भलाई नजर आई। ये नीली किताब इन जगहों पर असफल हो जाती है आखिर क्यों.?  श्रीलंका की भी वही हालात है। जबकि, चीन तो बाकायदा इन्हें डिटेंशन कैम्पों में रखता है और अपने सैनिक को भेजकर तम्बूओं से बच्चे पैदा करवाता है।तो कौन सी दुनिया डरती है इससे ? ये सब बस वैसा ही भोकाल है जैसा कि रावण दिया करता था। असल में इनकी असली ताकत दुनिया की सहनशीलता या कहें कि युद्ध को अवॉयड करके शांति से रहने की इच्छा है और, ये हर जगह उपद्रव कर दुनिया की इसी इच्छा को ब्लैकमेल करते रहते हैं कि अगर आपको शांति से रहना है तो आप हमें तुष्ट करते रहो। अन्यथा, हम उपद्रव करेंगे और आपकी शांति में खलल डालते रहेंगे।इसीलिए, इससे निपटना बेहद आसान है। क्योंकि, जिस दिन हमने अपनी ये आदत थोड़ी सी भी बदल ली। उसी दिन इनका भोकाल और दीन के प्रति समर्पण वैसे ही गायब हो जाएगा जैसे कि गधे के सिर से सींग। रही बात इनके उम्मत अर्थात  भाई-चारे की तो चीन, अमेरिका, मियांमार, श्रीलंका और अभी हिज्राइल युद्ध में इनका उम्मत नंगा हो चुका है। जहाँ युद्ध में मदद तो छोड़ो कोई उनके पिलिस्तीनों को शरण तक नहीं दे रहा है ! यहाँ तक कि इनके हीं धानाध्य नेता  इनकी खा रहें और ये जाति जनगणना कर के उन्हें बहला रहें। इनके जानने वाले  सबसे नजदीकी पड़ोसी ने तो अपने बॉर्डर को अच्छी तरह सील कर दिया है और एक भी जर्सी को अपने यहाँ घुसने से प्रतिबंधित किया हुआ है। उधर, अरब भी इंडिया मिडल ईस्ट इकोनॉमिकल कॉरिडोर से आशा लगाए बैठा है कि जब हमारा पेट्रोल खत्म हो जाएगा तो हम इसी कॉरिडोर से होने वाली कमाई से अपना पेट पालेंगे। जिस कारण अब वो हिज्राइल, अरब या भारत से दुश्मनी मोल ले कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से तो रहा। इसीलिए, ये सब उम्मत-फुम्मत कहीं कुछ नहीं है। हिज्राइल, मियांमार, श्रीलंका, अमेरिका, चीन आदि की घटनाओं से ये स्पष्ट हो चुका है जब लतियाये जाएंगे तो कोई बचाने नहीं आएगा।जैसे कि अभी हिज्राइल में कोई नहीं जा रहा है। क्योंकि, बाप बड़ा न भैया-सबसे बड़ा रुपैय्या। इसीलिए, अगर हिज्राइल का झगड़ा बढ़ता है तो उसी बहाना बनाकर दुनिया के हर देश को अपने-अपने क्षेत्र में मौजूद हमासों के विरुद्ध अभियान छेड़ देना चाहिए ताकि पूरी दुनिया शांति से रह सके।और, रह गई बात मार-झगड़े की तो, इससे ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है बाबा ने बुलडोजर का जो भय पैदा किया है वो हीं काफ़ी है।

           ___ पंकज कुमार मिश्रा, मिडिया विश्लेषक जौनपुर यूपी

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