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दिल्ली-राष्ट्रवाद की नई प्रयोगशाला दिल्ली चुनाव भाग 1

कुछ दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं | जैसे जैसे वक़्त क़रीब आता जा रहा है, यहाँ की फिजाओं में राजनीति की महक फैलती जा रही है | पर दिल्ली का चुनाव किसी के लिये भी आसान नहीं है, न तो 5 साल अच्छा सरकार चलाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी के, न हीं राष्ट्रवाद के अश्व पर सवार भारतीय जनता पार्टी के लिये | दोनों ही पार्टियाँ अपने अपने जीत का दावा कर रही हैं, पर ये तो दिल्ली की जनता तय करेगी कि उन्हें क्या भाता है | कांग्रेस की बात करना अभी के लिये अप्रासंगिक है, क्यूँ कि किसी भी स्थिति में लोगों की नज़र नहीं है | पर इस लेख में मैं बात करने वाला हूँ एक बड़े प्रयोग के बारे में जो भाजपा कर रही है दिल्ली में | भाजपा  के लगभग सभी नेता अपनी पूरी शक्ति से प्रचार में लगे हैं और उनके प्रचार का मुख्य मुद्दा है राष्ट्रवाद | कुछ समय पहले हीं केन्द्र सरकार ने सी ए ए को दोनों सदनों से पास करवाया है और देश के अलग अलग हिस्सों में इसका विरोध भी हो रहा है | जहाँ देश की एक बड़ी आबादी मुक्त कंठ से इसकी प्रशंसा कर रहा है वहीं एक वर्ग विशेष इसे सीधे सीधे अपनी नागरिकता से जोड़ कर देख रहा है और न केवल संवैधानिक अपितु कई असंवैधानिक तरीकों से इसका विरोध कर रहा है | और यही मुख्य बात है जहाँ पूरी राजनीति उसे अपनी धुरी बनाकर अपनी पूर्ण गति से नाच रही है | यहाँ न्यूटन की गति का वही पुराना नियम काम कर रहा है | इसका जितना ज्यादा और जिस तीव्रता से विरोध होगा उसी अनुपात में समान बल से उसका समर्थन भी होगा | यहीं अरविंद केजरीवाल मार खा गये, शायद न्यूटन का ये साधारण सा नियम वो भूल गये जिसका ये फल हुआ कि कुछ दिन पहले तक जहाँ भाजपा उनके सामने लड़ाई में भी नहीं थी, वो आज उन्हें ताल ठोकती दिख रही है | एक तरह से देखा जाये तो भाजपा अपने प्रयास में पूरी तरह से सफल रही है | राष्ट्रवाद वैसे भी भाजपा के लिये रामबाण जैसा रहा है जिसकी वजह से उस पर तरह तरह के आरोप लगते रहे हैं | पर एक बात है जो उसे मजबूत बनाती है और वह ये है कि जबसे यह अस्तित्व में है, वो अपने सिद्धांतों पर अडिग है | दूसरी पार्टियाँ तुष्टीकरण की राजनीति करती रही, और भाजपा लोगों को यह बात समझाने में कामयाब रही है | अगर भाजपा दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह उसके आगे की उसकी लंबित योजनाओं के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा | और वो बेहिचक एन आर सी और यूनिफार्म सिविल कोड जैसे विवादित बिल लायेगी | और ये सब मिलाकर उसकी राष्ट्रवादी छवि को और मजबूत करेंगे और इसका सीधा सीधा फायदा उसे बंगाल में होने वाले चुनाव में मिलेगा |बंगाल जो कभी वाम का गढ़ रहा उसे पहले ममता बनर्जी ने नये सपने दिखाये और अपने मोहपाश में जकड़ लिया | आज बंगाल की स्थिति पहले से भी अधिक खराब है | ममता बनर्जी को अपनी कुर्सी जाती हुई दीख रही है, और इसी बिलबिलाहट में वो आये दिन उल्टे सीधे बयान देती रहती है | इन सब की दुखती नब्ज़ है अल्पसंख्यक, जिनको ये हमेशा अपना कैडर वोट मानते रहे, चाहे कांग्रेस हो,   ,राजद हो,  सपा हो, बसपा हो या नवजात आप हो | पर इन्हें कभी इल्म नहीं था कि कोई पार्टी कभी पूरे हिन्दू वोट को संगठित कर पायेगी | पर उनका सपना टूट चुका है | 2014 के लोकसभा चुनाव में हीं यह बात साफ हो गई थी कि आनेवाला समय इन तथाकथित सैक्यूलर पार्टियों के लिये बुरा सपना होने वाला है | दिल्ली तो सिर्फ एक प्रयोगशाला है जो भाजपा कीआगे की रणनीति तय करेगी | उसकी नज़र बंगाल चुनाव पर भी है | पर एक बड़े कैनवस पर देखें तो ये भारत के लिये आवश्यक भी है | लोगों के लिये राजनीति का ये अनुभव नया है, और नई चीज़ें अच्छी लगती हीं है | अगर भाजपा का ये प्रयोग सफल रहा तो ये उसे भारतीय राजनीति का अजातशत्रु बना देगा |

अभय सिंह

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