सज्जन सिंह शहर में कोई बड़ा नाम तो नहीं था लेकिन विश्वास का नाम था। उनकी एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी। खूब चलती थी। कोई सामान शहर की बड़ी से बड़ी दुकान पर नहीं मिलता तो सज्जन सिंह की दुकान पर मिल जाता। यही वजह थी कि सारा शहर उन्हे जनता था।
सज्जन सिंह अब बूढ़े हो चले थे। दोनों बेटों की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी। बड़े बेटे ने कम पढ़ाई की थी और दुकान पर पिता का बंटाता था। पिता कभी बाहर जाते तो दुकान वही संभालता था। छोटे बेटे को आगे तक पढ़ने का अच्छा अवसर मिला था और उसने उसका उपयोग भी किया था। एमबीए की डिग्री लेकर अब अच्छी नौकरी की तलाश में था। पिता चाहते थे कि जब तक नौकरी नहीं मिल जाती तब तक वह दुकान पर बैठे और हिसाब किताब देखे जिससे बड़े भाई को मदद मिले। छोटा विनीत पढ़ाई में तेज़ होने के साथ साथ अभिमानी भी था। उसका मानना था कि इतनी बड़ी डिग्री लेकर एक कम पढ़े लिखे दुकानदार के नीचे एक छोटी सी दुकान पर काम करने से अच्छा है वह नौकरी की तलाश जारी रखे। उसकी इच्छा को मानते हुए सुमित ने दुकान पर हिसाब किताब देखने के लिए एक लड़के को रख लिया। लड़का होनहार था जल्द ही काम संभाल लिया।
विनीत की नौकरी की तलाश जारी थी और सुमित दुकान पर व्यस्त हो गया था। पिता अब कम ही जाते थे दुकान पर। बाहर से भी सामान सुमित ही लेकर आता था। लड़के जगत में पूरा विश्वास जीत लिया था इसलिए सुमित उसे दुकान पर बैठाकर खुद दूसरे शहर सामान लाने चला जाता था।
एक दिन अचानक सज्जन सिंह दुकान पर आ बैठे। शाम को गल्ला मिलाया तो बहुत कम था। दुकान बहुत अच्छी चल रही थी। इतनी कम आमदनी देखकर वो परेशान हो गए। सुमित वापिस आया तो उन्होंने अपनी शंका उसके सामने जाहिर की। वह भी सकते में आ गया। जगत पर अविश्वास का प्रश्न ही नहीं था फिर बिक्री इतनी कम कैसे हुई ? पिता दिन भर दुकान पर थे और दुकान पर पूरे दिन भीड़ लगी थी। मामला समझ नहीं आ रहा था। सुमित जगत पर नज़र रखता इससे पहले उसने खुद कबूल कर लिया कि उसने कुछ रुपए अलग रखे थे। सुमित हैरान था। पिता को पता चला तो तुरंत जगत को दुकान से हटाने का आदेश मिल गया। सुमित ने पिता को समझाया कि अभी अपने निर्णय को कुछ दिन के लिए टाल देते हैं ताकि पता चले कि जगत जैसे होनहार लड़के को चोरी की ज़रूरत क्यों पड़ गई ?
सुमित ने जगत को हिसाब किताब से हटा दिया और अपने साथ रखना शुरू कर दिया। कहीं भी जाता तो जगत उसके साथ होता। यहां तक कि घर खाना खाने में और बच्चों को स्कूल छोड़ने में भी। विनीत रोज़ पिता से कहता,” कम पढ़े लिखे दुकानदार ऐसे ही ठगे जाते हैं। जगत को बाहर करने के बजाय घर तक साथ लाना शुरू कर दिया है। एक दिन दुकान बेचकर निकल जायेगा ये लड़का।”
सज्जन सिंह भी सुमित की इस बात को समझ नहीं पा रहे थे कि जगत के चोरी कबूल लेने पर भी उसे साथ रखने का क्या कारण था ? परंतु स्वभाव के अनुरूप उन्होंने धैर्य रखा और बड़े बेटे पर विश्वास भी।
सप्ताह में एक दिन दुकान बंद रहती थी लेकिन इस सप्ताह सुमित ने दुकान खुली रखी। पिता और भाई को भी दुकान पर बुलाया। जगत तो उसके साथ ही रहता था। अपेक्षा के अनुरूप बिक्री कम ही हुई क्योंकि सब लोग यही जानते थे मंगलवार को दुकान बंद रहती है। शाम को गल्ला मिलाया। जगत सबके लिए चाय समोसे लेकर आया। ,” सुमित भाई अब मुझे जाने दो। जितने पैसे उस दिन कम थे वो मेरी तनख्वाह से काट लेना। मैं कहीं और काम ढूंढ लूंगा।” जगत ने हाथ जोड़कर कहा। ,” ठीक ही कहता है। अब इसे जाने दो।” सज्जन सिंह ने भी जगत की बात का समर्थन किया।
” सुमित भैया को समाज सेवा का इतना चाव लगा है तो करें। दुकान पर ऐसे प्रयोग न करें। हरदम साथ रखते हैं एक चोर को। यह कभी भी, कुछ भी कर सकता है।” विनीत के तेवर तीखे थे। जगत ने चुप्पी थोड़ी ,” विनीत भाई आप सुमित भाई को कुछ न कहें। वो भले ज्यादा नहीं पढ़े हैं पर उनको दुकानदारी आती है।” सुमित अब भी चुप था लेकिन विनीत जगत की बात सुनकर आपे से बाहर हो गया।
,” अब एक चोर मुझे दुकानदारी सिखाएगा ? सुमित भैया से पूछे बिना मैं तुम्हे दुकान से निकाल सकता हूं। दुकान में मेरा भी बराबर का हिस्सा है।” सज्जन सिंह विनीत की बातों से आहत थे। सुमित अब भी कुछ नहीं बोला।,” आपके कहने से मैं एक गलती कर चुका हूं अब दूसरी नहीं करूंगा। आप ही के कारण मेरे ऊपर चोरी का इल्ज़ाम आया है। उस दिन आप ही आकर दुकान से पैसे ले गए थे। मैंने अपनी आंखों से देखा था।”
सुमित ने सिर उठाकर भाई की और देखा। जगत उसके सामने हाथ जोड़कर जाने की इजाज़त मांग रहा था। सज्जन सिंह सिर पकड़कर बैठे थे।
,” जगत तुम कहीं नहीं जाओगे।” सज्जन सिंह उठते हुए बोले। विनीत भी उनके साथ उठ खड़ा हुआ। ,”इसकी बातों पर विश्वास मत करना पापा। खुद को बचाने के लिए ऐसा कह रहा है। मुझे ज़रूरत होती तो आपसे मांग लेता।” उसकी बात सुनकर सज्जन सिंह पलटे। ,” दुकान पर अब सुमित बैठता है। जगत उसका मुनीम है। अगर मांगना है तो जगत से मांगना होगा। तुम्हारा हिस्सा मैं आज ही तुम्हे देता हूं। लेकिन दुकान तुम्हारे हिस्से में नहीं है।”
सुमित ने पिता को समझाने की कोशिश की लेकिन उनका गुस्सा कम नहीं हुआ ,” सुमित, सब जानते हुए भी तुमने मुझे क्यों अंधेरे में रखा ?” सुमित ने सिर झुका लिया। विनीत चुपचाप दुकान से जा चुका था। पिता ने शहर के बड़े बाजार में उसे एक दुकान दिलाने की बात सोची थी लेकिन अब इरादा बदल दिया था। अच्छे दुकानदार का सबसे पहला गुण” ईमानदारी” ही विनीत में नहीं थी। वह नौकरी ही करे यही सही था।
अर्चना त्यागी